शिवराज विजय | Shivaraj Vijay

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Shivaraj Vijay by श्रीधर प्रसाद पन्त -Shreedhar Prasad Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रालोचना भाग | র [ -१३ स्वरूप और अपना विशिष्ट व्यक्तित्व ई । संलेप को विस्तार के साथ भ्रौर विस्तृत को संक्षिपत करके कहने की उसकी, प्रपनी विशेषता है 1 उसकी यह्‌ कला उधार ली हुई न होकर उसकी अपनी है। गद्य में भी काव्य का सा आनन्द, प्रहरन्‌ करना,..भगवती भागीरथी'के-निर्मल निर्भर के समान श्रोता या पाठक को अवाघ रूप से: आप्याथित करना संस्कृत गद्य का अ्रपना गुण है । न केवल भारतीय साहित्य अपितु विश्व सौहित्य भी संस्कृत गद्य के इस वेशिष्ठ्य का सदेव ऋणी रहेगा ।




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