राजस्थानी - भारती | Rajasthani - bharati

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Rajasthani - bharati by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शठोढ़ वीर दुर्गदास का एक पत्र হালা रामधिंघ रे पोत्रा ने दोय हमारी चार हमार अप्तवार ते एक किरोड़ दाम ইনাঁঘ লারিং ইনি হালাহাম* ' उप्रे विदा क्रियो ठे । ओर समाचार आवस्ती सु राजनें लिखा समप्तथ प्षाथ रो जुहार श्रवधारनो वढता कागल पमाचार वेगा देनो शपाढ़ सुदि १३ रविवारे मु० कोट्डा । ( झाडी पंक्तियों में ) --- कवर तेमकरण मेहकरण अमैकरण रो जुहार प्वधारनों केंवर भगवानदाप्त' प्वापदाप्त महेसदाप्त छुन्दरदास मनोहरदास्त नोगीदास नू राम राम वांचनो अचछदाप्त भोजराज कल्यादा चन्द्रमाण श्रनवर्सिष रो जुहार बांचनो । यद्यपि हस्त पत्र में संवत्‌ नहीं लिखा है, दथापि राना ললিত ঈদ দান জী शांवेर का दिया जाना और उप्तका ঘালাহান ঘং चढ़ाई करना वि० से० १७४६ की घटनाय ह । इस के भततिरिक्ति उपयुक्त पत्र में आषाढ़ सुदि १३ को रविवार लिखा है, जो विक्रम संबत्‌ १७४५ और १७४८ में आता है। इस से सेमवतः यह पत्र वि० सं १७४८ में (२८ जन छ० १६६१ ६० को) लिखा गया होगा। পাশ (३) राजा रामसिंह का पौन्र विशनसिंह वि० सं० १७४६ में अपने पितामह का उत्तराधिकारी हुआ था। (८) राजाराम शिवाजी का द्वितीय पुत्र था और वि० सं० १७४६ में, अपने ज्येष्ठ धाती शम्भाजी के मुगलों द्वारा पकड़ लिए जाने के बाद, उनका उत्तराधिकारी हुआ । परन्तु कुछ ही क्राल वाद शाही सेना के श्राक्तमण के कारण इसे वेष वदल कर भागना पड़ा । (५) भगवानदाघ दीवान राजसिंह का, जिसे उपर्युक्त पत्र लिखा गया था, पुत्र था। (६) कल्याणदाय दीवान राजसिंह फा पौत्र था।




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