श्री समयसार प्रवचन भाग ४ | Shri Samayasar Paravachan Volume-4
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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No Information available about माणिकचन्द्र दोषी - Manikchandra Doshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ भ्र्थे---पतीश्वर ( श्री कुन्वकुन्दस्वामो ) रजःस्थानको- 1
]]( भृूमितल को- छोड़कर चार भ्रगुल ऊपर श्राकाश्च मे गमन करते „1
1 ये उसके द्वारा मै ठेसा समश्ता हू कि-वे श्रन्तर मे तथा वाह्य (।
41 मेँ रजसे (प्रपनी) भ्रत्यंत श्रस्पुष्टता व्यक्त करते थे (--प्रन्तर | !
| ॥ में वे रागादिक सल से श्रस्पूष्ट ये झौर बाह्य में धूल से ।
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॥ ण विवरोहह तो समणा कटं सुमग्णं पयाणंति ॥
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॥ সঘ:-( महाविदेह क्षेत्र के वर्तमान तीर्थंकर देव ) भरी |
)( सोमघर स्वामी से प्राप्त हृए दिव्य ज्ञान हारा धी पद्मनन्दिनाय
41 ने (श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने ) बोध व दिया होता तो घुनिजन |
| सच्चे मार्गं को कंसे जानते ?
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| है कुन्दकुन्दादि ध्राचार्यों ! प्रापके वचन भी स्वरूपानुसंघान !
1 मे इस पामर को परम उपकारभूत हुए हैं। उसके लिये से |
१ श्रापको श्रत्यन्त भक्ति पूर्वक नमस्कार करता हुं । १
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