श्री समयसार प्रवचन भाग ४ | Shri Samayasar Paravachan Volume-4

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Shri Samayasar Paravachan Volume-4 by माणिकचन्द्र दोषी - Manikchandra Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ भ्र्थे---पतीश्वर ( श्री कुन्वकुन्दस्वामो ) रजःस्थानको- 1 ]]( भृूमितल को- छोड़कर चार भ्रगुल ऊपर श्राकाश्च मे गमन करते „1 1 ये उसके द्वारा मै ठेसा समश्ता हू कि-वे श्रन्तर मे तथा वाह्य (। 41 मेँ रजसे (प्रपनी) भ्रत्यंत श्रस्पुष्टता व्यक्त करते थे (--प्रन्तर | ! | ॥ में वे रागादिक सल से श्रस्पूष्ट ये झौर बाह्य में धूल से । || र ॥ ण विवरोहह तो समणा कटं सुमग्णं पयाणंति ॥ -[ द्शौनसार ] | ॥ সঘ:-( महाविदेह क्षेत्र के वर्तमान तीर्थंकर देव ) भरी | )( सोमघर स्वामी से प्राप्त हृए दिव्य ज्ञान हारा धी पद्मनन्दिनाय 41 ने (श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने ) बोध व दिया होता तो घुनिजन | | सच्चे मार्गं को कंसे जानते ? | } पी রর /% | है कुन्दकुन्दादि ध्राचार्यों ! प्रापके वचन भी स्वरूपानुसंघान ! 1 मे इस पामर को परम उपकारभूत हुए हैं। उसके लिये से | १ श्रापको श्रत्यन्त भक्ति पूर्वक नमस्कार करता हुं । १ | [ श्रीमदू राजचन्द्र ] ঠা कक ॥ 1 जई पडमणंदिणाहो सीम॑धरसामिदिच्वणाणेण ग } ( > हि 1 1 & | ग १




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