देव सुधा | Dev Sudha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ देव-सुधा
प्रेम-पियूख-पयोधि मैं मिल्त विमल निरदुद।
न्यारो होत न एड हे ज्यों जल ते जल-बुंद ।। ३६ |।
पूरन पुन्य उदोत जेह्दि प्र म-पयुखक्-पयोधि{ ।
निकसी निरमल चंद्रिका, विकसी सब जग सोधि ॥ २७॥
प्र सवती पदुमिनि हरे मधुकर-उर की प्यास्त।
बूड़ मरे अल धूलि में कतक्ि पद-बिन्यास॥ रे८।॥
अम रूप रस बस करे तिय में प्रेम अनूप ।
यमकी-सी तिय प्रेम बिनु मनु आस्तीबिष-रूप ॥ ३६ ॥
भ्रम केलह मध्या कलुष प्रौढा मानस गबे।
रोख दोख सों मिलत नहिं प्रेम पोष सुख पर्व॥ ४० ॥
तब ही लों सिंगार रसु, जब लंगि द्पति-प्रंमई।
सन्लिन होत रस प्रोम बिन अयो कलई कों देम ॥ ४१॥
यह ॒भिचार प्रमीन फो विषयी जनको नोँहि।
विषय विकाने जनन की प्रेम ভিঅব+ न डाहि ॥ ४२॥
ऐसे ही बन प्रेम रस नीरस रस सिगार ।
भेम बिना सिंगार हूं सकता रसायन सार »॥ ४३॥
® असरत । 7 3 मिड নিল
त समुद्र
+ सपु |
$ कवि दंपति-प्रेम से परिपूर्ण रस को ही £गार-रस मानता है ।
- + छुवत ।
श गार»विना प्रेम के नीरस है, किंतु विना श्टगार का भी
भरम सरस है
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