हर्षवर्धन | Harshvardhan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
501
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ 1 हषेवद्धेन
पांचवीं शताब्दी के मध्यकाल में प्रायः समरत उत्तरी भारत
गुप्तवंशीय सम्राटों के अधीन था । कुमारगुप्र प्रथम ( ४१५-४५५
३० ) का आधिपत्य बंगाल से लेकर काठियावाड़ तक विस्तृत
विशाल साम्र|ज्य पर स्थापित था | किंतु कुमारगुप्त के शासन-
काल के अंविम दिनों में साम्राज्य के कुछ भाग में उपद्रव खड़े
हो गए | कुमा रगुप्त एक ऐसी जाति के साथ धोर युद्ध करने में
संलग्न था जिसके विषय में हमें कुछ ज्ञाव नहीं है । यह जाति
पुष्यमित्रों की थी । कुछ समय के लिए साम्राज्य का गौरव-सुयं
मंद पड़ गया। किंतु कुमारगुप्त के उत्तराधिकारी रकंदगुप्त
( ४४४--४६७ ई० ) की वीरदा एवं सैनिक कुशलता के कारण
गुप्तसाम्राज्य ने अपने लुप्त गोरब को पुनः प्राप्त कर लिया ।
पुष्यमित्रों के साथ युद्ध करने में स्कंदगुप्त को बड़े-बड़े संकटों
का सामना करना पड़ा | एक रात तो उसने खाली जमीन पर
सोकर बितादे थी । कितु गुप्त-साम्राज्य के दुर्भाग्य के दिन अभी
प्रारंभ ही हुए थे । पृष्यमित्रों के भय से त्राण पाते ही एक दूसरी
आपत्ति ने आकर उसे घेर लिया। यह आपत्ति बबर हूसों के
आक्रमण के रूप में आई । हूण लोग पुष्यमित्रों से भी अधिक
बलशाली थे और वे समस्त गुप्त-साम्राज्य को एकदम ध्वस्त कर
देना चाहते थे । स्कंदगुप्त ने एक. बार फिर साम्राज्य को संकट
से बचाया | उसने हों को एक गहरी पराजय दी। हमों पर
यह विजय उसने अपने शासन-काल के प्रारंभ ही में--४५८
३० के पूतरं ही--भ्राप्त की थी। इस विजय द्वारा उसने समुद्रगुप्त
से भी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की । इस युद्ध की ख्याति म्लेच्छ देशों
में भी फेल गई! । इसके पश्चात् ओर भी अनेक युद्ध हुए जो
लगातार ब रद वर्षावक जारी रहे ।* स्कंदगुप्त ने पश्चिमी प्रांतों
( सोराष्ट एवं मालवा ), पूर्वी प्रांतों ( बिहार एवं बंगाल ) तथा
१महाराज स्कंदगुसत का जूनागढु का लेख |
হালাল 'कगीरियल्त दस्म ऋफ इंडिया?, प्रण ३६
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