शिक्षण - सिद्धान्त के मूल आधार | Shikshan Siddhaant Ke Mool Aadhaar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शिक्षण - सिद्धान्त के मूल आधार  - Shikshan Siddhaant Ke Mool Aadhaar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जेम्स एस॰ रॉय - Jems S. Ray

Add Infomation AboutJems S. Ray

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दाशनिक समस्या ৬৫ वादी देन की सचाई को पहले से मान कर चलता है, और यदि इसे कुछ कार्य करना है तो मान कर ही चलना होगा । पर यह जिन भौतिक या मान- सिक घटनाओं का अध्ययन करता है, उनके पीछे मौजूद वास्तविकता या सत्य: के तात्विक रूप के प्रइन को जान-बूक कर अनिर्णीत छोड़ सकता है । आज वेज्ञा- निकों को दर्शन की समस्याओ्रों पर विचार करते हुए आवश्यक रूप से भौतिक- वादी नहीं बनना पड़ेगा। वे यह विश्वास कर सकते हैं कि उनके इलेक्ट्रानों मेँ मन के सदुृश कोई चीज है। वे विश्व को “एक बड़ी मशीन के बजाए एक बड़े विचार के तुल्य देख सकते हैं, वे उस विचार की, उस रीति की श्रभिव्यक्ति (90109680100) के रूप में देख सकते हैं, और यह चौंकाने वाला सिद्धान्त प्रतिपादित कर सकते हैँ कि जगत्‌ का निर्माता अवश्य एक महान गरिएतज्ञ होना चाहिए।” किसी समय ऐसे विचार कल्पना की उड़ान, और विचार के अयोग्य मानें जाति, पर भ्राज वहु बात नहीं। हम' पहले ही देख चुके हैं कि भूत-द्रव्य को सिर्फ परमाणुओ्रों से बना हुआ मानने वाला पुराना विचार গন खण्डित हो चुका है श्रौर स्वयं परमाणुश्रों को बिजली के ्रत्यत्प श्रावेशों (12728) कौ संकुल प्रणालियो (८०णपफएखः ल) के रूप में विभेदित किया जा चूका है । भौतिक विज्ञान कौ विधिर्या इन श्रन्तिम' उपादानों की यथार्थ प्रकृति पर कोई प्रकाश नहीं डाल सकतीं । यहाँ प्रेक्षण का अन्त हो जाता है और परिकल्पन (90৩০12- 020) का आरम्भ हो जाता है। श्राज के भोतिक-शास्त्री और ज्योतिषी जगत्‌ के संचलत का वर्णन गणित के द्वारा करने में ही अपने कार्य की इतिश्री समझने लगे हैं। इस महान कार्ये उन्हें;जो सफलता हुईं है, उसे देखकर दांतों तले उंगली दवानी पड़ती है, क्योंकि उन्हें जो गणितीय वर्णन वे चाहते थे, वह प्रस्तुत करने में और विश्व को कुछ অলীকহ্যাঁ (80059100003) के रूप में लाने में बहुत भारी सफलता मिली है। पर इन समीक रणों में वे यह नहीं बता सकते कि क्ष (अज्ञात राशि) किस को निरू- पित करता है। जहाँ तक वस्तुओ्रों के भीतरी स्वरूप का संबंध है, उनमें से ग्रधिक- तर यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें इस विषय में कोई ज्ञान नहीं और कि उ अंतर्वस्तु के बजाए रूप का ही ज्ञान है। वह महान श्रज्ञात वस्तु, विद्व का वह्‌ सारतत्व, क्या है ? कुछ लोग इस प्रइन से बचकर निकल जाते हें श्र कहते हैं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now