स्वतंत्र भारत का शासन विधान | Svatantra Bharat Ka Shasan Vidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
69
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १ |
सामूहिक-क्रान्ति का परिणाम होतो हैँ । भ्तरतवषे में
दिधान परिपद् के निर्माण का वहुत बड़ा श्र य राष्ट्रीय-सद्य सभा के
स्वातन्त्रय-सह्ृप को है। किन्तु पूर्णरूपेण बह देश के भीत्तर
हुई किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं अपितु व्रिटिश-मिशन द्वारा
निर्धारित मियमों के अनुसार चुनी ग़ई दिधान-परिपद् है।
मन्त्रि.मण्डल ने सास्मदायिक विषयों के सम्बन्ध मे त्रिधान-
परिषद् प्रर दुद्र प्रतिवन्थ लगाये हं! अपनी योजना मे कुछ
पेते मौलिक सिद्धान्तों का भी निर्देश किया दे जिनका पालन
-कस्ने को विधान-परिषट् बाध्य दै। हमारे देश की विशेष परि-
स्थितियों के कारण विधान परिपद् पूर्णरूप से सच-सत्ता-सम्तन्न
संस्था नहीं वन सकी किन्तु हमें इसमें कोई सन्देह नहीं कि
विधान-प्रिपटू खयमेव यह स्वतन्त्रता प्राप्त कर सब-सत्ता-
सम्पन्न संस्था बन जायेगी। विधान परिषद् के अ्रध्यक्त डा०
राञन्द्रप्रसाद के निम्न शब्द इस “विषय में ध्यान देने योग्य हैं:
“मुझे यह व्िदित है कि इस विधान-परिषद् पर जन्म से ही कुछ
परिमितता लगी हुई है । हो सकता है कि अपने कार्य सम्बालन
सें तथा कतिपय नियों पर पहुचने में हम इस परिमितता को
न भूल सके अथवा उनकी उपेक्षा न कर सके, लेकिन में जानता
हैँ कि उस परिमितता के बावजूद विधान-परिपद् एक स्वशासेक
तथा आत्मनिर्णायक संस्था है और उसकी कार्यवाही में कोई
चाष्य.सत्ता हस्तक्षेप नही कर सक्ती । वास्तव मे इस व्रिधान.
परिपद् की यद् ताक्त है दिः ददे उस परिमितता को नष्ट करे
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