स्वतंत्र भारत का शासन विधान | Svatantra Bharat Ka Shasan Vidhan

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Svatantra Bharat Ka Shasan Vidhan by पट्टाभि सीतारामैय्या - Pattabhi Sitaramaiyya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १ | सामूहिक-क्रान्ति का परिणाम होतो हैँ । भ्तरतवषे में दिधान परिपद्‌ के निर्माण का वहुत बड़ा श्र य राष्ट्रीय-सद्य सभा के स्वातन्त्रय-सह्ृप को है। किन्तु पूर्णरूपेण बह देश के भीत्तर हुई किसी क्रान्ति का परिणाम नहीं अपितु व्रिटिश-मिशन द्वारा निर्धारित मियमों के अनुसार चुनी ग़ई दिधान-परिपद्‌ है। मन्त्रि.मण्डल ने सास्मदायिक विषयों के सम्बन्ध मे त्रिधान- परिषद्‌ प्रर दुद्र प्रतिवन्थ लगाये हं! अपनी योजना मे कुछ पेते मौलिक सिद्धान्तों का भी निर्देश किया दे जिनका पालन -कस्ने को विधान-परिषट्‌ बाध्य दै। हमारे देश की विशेष परि- स्थितियों के कारण विधान परिपद्‌ पूर्णरूप से सच-सत्ता-सम्तन्न संस्था नहीं वन सकी किन्तु हमें इसमें कोई सन्देह नहीं कि विधान-प्रिपटू खयमेव यह स्वतन्त्रता प्राप्त कर सब-सत्ता- सम्पन्न संस्था बन जायेगी। विधान परिषद्‌ के अ्रध्यक्त डा० राञन्द्रप्रसाद के निम्न शब्द इस “विषय में ध्यान देने योग्य हैं: “मुझे यह व्िदित है कि इस विधान-परिषद्‌ पर जन्म से ही कुछ परिमितता लगी हुई है । हो सकता है कि अपने कार्य सम्बालन सें तथा कतिपय नियों पर पहुचने में हम इस परिमितता को न भूल सके अथवा उनकी उपेक्षा न कर सके, लेकिन में जानता हैँ कि उस परिमितता के बावजूद विधान-परिपद्‌ एक स्वशासेक तथा आत्मनिर्णायक संस्था है और उसकी कार्यवाही में कोई चाष्य.सत्ता हस्तक्षेप नही कर सक्ती । वास्तव मे इस व्रिधान. परिपद्‌ की यद्‌ ताक्त है दिः ददे उस परिमितता को नष्ट करे




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