निर्मला | Nirmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.94 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे दूसरा परिच्दद
उद्यभानु--तो आखिर तुम मुमे क्या करने कहती हो ?
कल्याणी--कह तो रही हूँ; पका इरादा कर लो कि पाँच
हज़ार से अधिक न खुर्च करेंगे । घर में तो टका है नहीं; कर्ज ही
का भरोसा ठहरा, तो इतना क्र क्यों ले लो कि जिन्दगी में
अदा न हो । आखिर सेरे और बच्चे भी तो हैं, उनके लिए भी
तो कुछ चाहिए ।
उद्यभानु--तो क्या झाज में सरा जाता हूँ ?
कल्याणी--जीने-मरने का हाल कोई नहीं जानता ।
_उदयसाजु--तो तुम बैठी यद्दी मनाया करती हो ?
कल्याणी--इसमें विगड़ने की तो कोइ बात नहीं है । मरना
एक दिन सभी को है । कोई 'यहाँ 'झमर दोकर थोड़े ही झ्ाया
है। आँखें चन्द कर लेने से तो होने वाली,वात न टलेगी । रोज़
आँखों देखती हूँ, चाप का देहदान्त हो जाता है; उसके बच्चे
गली-गली ठोकरें खाते फिरते हैं । छादमी ऐसा काम दी
क्यों करे
उद्यभानु ने जल कर कहा--तो अब समभक लूँ कि मेरे
मरने के दिन निकट आ गए; यह तुम्हारी भविष्यवाणी है ।
सुद्दाग से खियों का जी उवचते नहीं सुना था; झाज यद्द नई
चात माद्य्म हुई ! रैंडापे में भी कोई सुख होगा ही !!
'.. कल्याणी-असुम से दुनिया की भी कोई बात कहीं जाती है;
तो जहर उगलने लगते हो । इसीलिए न कि जानते हो इसे
कहीं ठिकाना नहीं है--मेरी ही रोटियों पर पड़ी हुई है; या और
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