वनमाला | Vanmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ माँ की उत्तकन
“तब तो मैं जरूर पूछूँगा | आप जानती हैं कि “जनल्िस्ट' हुनिया में किसी
भी बात से ऊबा नहीं करता,” जैदी साहब्र मुसकरा कर बोले ।
बद्धा ने कदा, “बात यदं दै क्रि यह तो आप घानते ही है कि मां की अपनी
सन््तान का कितना मोह होता है। खास तौर से जब कि माँ विधवा हो श्रौर
सनन््तान अकेली हो और उसके अल्लावा माँ का कोई सहारा न हो |?!
“बेशक बहुत मोह होता है,” जैदी साहब ने हामी भरी ।
“सिफ मोह ही नहों होता बल्कि अपनी श्रोत्ञाद से उग्मेदं भी होती हैं |
अपने ही हित के लिए नहीं बल्कि श्रोल्ाद की भत्ताई के लिए भी कुछ सपने
हर एक माँ के दिल्ल में होते हैं। वह चाहती है कि उसकी श्रौलाद् किसी ऐसे
रास्ते में पेर न रखे जिससे उसका भविष्य खराब हो । लेकिन इन उम्मेदों को,
इन सपनों को जब बच्चे तोड़ देते हैं ओर मनमानी करने लगते हैं तो बूढ़ी
ओर कमजोर माश्रों के पास आंसू बहाने के अद्यावा ओर क्या रह আলা ই1%
“बेशक,” मि० जेदी ने ताज्जुन से कह, “लेकिन में आपकी बात समझ
नहीं पा रहा हूँ। आपकी बेटी ने ऐसी क्या बात की जिससे आपको दुख
पहुँचा १?
“क्या आप नहीं जानते कि उसने एक गैर जात के गेर बंगाली से, सारे
रस्म रिवाज तोड़ कर शादी कर ज्ञी है ! हमारे यहाँ के लोग इस बात पर कैसा
तूफान खड़ा कर रहे हैं इसका शायद आपको पता नहीं है |”
जैदी साइब ने समभाने की कोशिश की, “श्राप तो काफी पढ़ी लिखी और
'कल्चर्ड' मालूम होती हैं। आप भी ऐसे दकियानूसी ख्यालातत रखती दै 9”
“मुझे मालूम था कि आप यही कहेंगे,” बूद्धा मुसकराकर बोली, अपने
जमाने में में भी बहुत 'ऐडवबांध्ड” समझी जाती थी | मैंने उस जमाने में बी०ए०
पास किया था जब हमारे बंगालियों की एडवांस्ड कम्यूनिटी! में भी लड-
कियों का मेट्रिक होना ही बड़ी बात समझी जाती थी। अपने घर और জন্ত্যান্
की परदे की परम्परा को भी सबसे पहले मैंने ही तोड़ा था । पुराने रिवाजों को
तोड़कर मैं सभा-सोसाइटियों में भी बराबर हिस्सा लेती रही। वंगमंग-श्रादो-
लन के समय-- जब मेरी शादी नयी नयी दी हुई थी--मैंने अनगिनत समा्रों,
में भाषण दिये । बीपियों क्रांतिकारियों को अपने घर जगह दी | मुझ पर शाप
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