विश्वदर्शन | Vishavadarshan

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Vishavadarshan by रामरत्न थपल्याल - Ramratn Thapalyaal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ও ) निरीक्षक से सबके नाप की जॉच कराइये । देखने से सब मे अणु अखु मात्र का अवश्य फर्क सालूस होगा | फिर भी निश्चय नही होता कि किस का नाप इब्च की दूरी से सत्य है। सत्य दृष्टि से पैमाने का स्वरूप देखा जाता तो इब्च की दूरी भी सही निकलती । सर्वसाधारण की जानकारी के लिये लेखेन-शेली साधारण भाषा मे लिखी गई है। श्टंगारम्रेसियों को यह विषय शायद अनरस सा मालूम होगा, क्योकि वैज्ञानिक विषय प्रथम तो स्वतः ही रसिकों को नीरस मालूस होता है, फिर #ंगारप्रेमियों को तो कहना ही क्या है। मेरा ध्यान तो केवल लक्ष्य के चित्र खीचने पर रहा | विषयों के ज्ञान होने पर लौकिक जनाने के लिये प्रत्येक विषय का क्रम ( आदि, मध्य, अन्त ) निराधार रखना सेरे लिये कितना कठिन काम था, परिडतजन इसका अनुभव कर सकते है । म मुहस्थाश्रम को पवित्रता पर देवियों का ध्यान भी इस ओर आकर्षित करता हूँ और सती देवियों का यथेष्ट आद्र करता हूँ হল अ्न्थ के निर्मोण मे मेरी अद्धोद्धिनी श्रीप्रतिमादेवी पू सहायक रही । यद्यपि वे परिडता - नही है, तथापि उन्हाने यहस्थी के सारे का्यभारों को अपने ऊपर उठाकर मेरी शान्ति और स्वतन्त्रता मे सती ख््रियों की तरह पूर्ण सहायता की, जिस शान्ति ओर स्वतन्त्रता के बिना अन्थ का निर्माण करना मेरे लिये कठिन था । में पुस्तक पर विद्धान्‌ सम्मतिदाताश्नो का यथेष्ट श्रादर करता हूँ । कुधा के होते इष्‌ उसको पूति का ध्यान होता है। भोगों की पूति होने पर प्रतिष्ठा की, उसके होने पर संसार के प्रभुत्व की और प्रशुत्व-भोगों की पूति पर ईश्वरीय ज्ञान की इच्छा होती है । प्राचीन भारत इस सवोच्च सभ्यता के शिखर पर पहुँच चुका




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