द्विवेदी पत्रावली | Dwivedi Patravali

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Dwivedi Patravali by बैजनाथ सिंह 'विनोद' - Baijanath Singh 'Vinod'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आचाये १० महावीरपसादं द्विवेदी [ खंक्षित्त जीवनी ] पं० महावीरप्रसाद द्विवेदीके पितामह पं० हनुमन्त द्विवेदी संस्कृतके अच्छे परिडत थे । उनके तीन पुत्र थे--दुर्गाप्रसाद, रामसहाय और रामजन ! पं० हनुमन्त द्विवेदीकी मृत्यु असमयमे ही हो गई | इस कारण उनके पुत्रोकी शिक्षा न हो सकी । सबसे छोटे बालक रामजनकी भी मृत्यु हो गई। दुर्गाप्रसादने वैसवाडेसे ही गौराके तालुकेदारके यहाँ नौकरी कर ली और रामसहाय ईस्ट इण्डिया कम्पनीकी सेना मे भर्ती हो गये । अंग्रेजोकी प्रखार-नीतिके कारण देशके छोटे-छोटे राजाओमे श्रसन्तोष था। असन्तोषने घड़यन्त्रका रूप धारण किया। अंग्रेजी सेनामे विद्रोहकी आग घघकी। १८५७ का समय था। कम्पनीकी जिस सेनामे रामसहाय थे, वह होशियारपुर ( पंजाब ) मे थी। विद्रोहकी चिंनगारी वहाँ भी पहुँची । विद्रोह जब फैलता है तो संक्रामक रूपमे फेलता है। देखते-देखते उसने होशियारपुरके भारतीय सैनिकोकी अ्पनेमे समेट लिया । पर अंग्रेज बहुत सावधान थे । उन्होने ताड़ लिया कि सिपाहियोके मनमे क्‍या है! और समय रहते दी विद्रोहको कुचलकर धर दिया । हिन्दुस्तानी फौजमे भगदड़ मच गई । भागनेवा दोमे रामसहाय भी थे । उन्होने देखा कि आगे सत- लजकी उमड़ती धारा है और पीछे तोप | दोनो ही ओर मृत्यु है। किन्तु साहस करके, मत्युसे बचनेके प्रयत्ममे सतलजसे तो बचा भी जा सकता है; पर रुकनेसे तोप द्वारा कायरतापूर्ण मृत्यु निश्चित है। अतः वह सतलज २




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