चतुर्दशभाषा - निबन्धावली | Chaturdashabhasha - Nibandhawali

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Chaturdashabhasha - Nibandhawali by शिव पूजन सहाय - Shiv Pujan Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गंस्कृत माधा और उसका साहित्य ५ घिकारी रूप मेंस कौन-सी वक्तु प्राप हुईं ২ , सोम निःसंकोच उत्तर दूँ गा की यह सम्पत्ति है-- संस्कृत भाषा, उसका साहित्य ओर उसके भीतर जमा सारी पूजी।” संस्कृत भाषा के सम्बन्ध में पराश्चात्य विद्वानीं और कुछ उनके अ्रनमुयायी भारतीय बिद्दानों का मत है कि संस्कृत्मापां, जनसाधारण की व्यावहारिक भाषा कमी नहीं रही; प्रत्युत घह सभ्य समाज की परिष्कृत साहित्य-माषा रही । साधारण जनता की भाषा प्राकृत भाषा थी | उक्त दोनों के नाम से ही यह स्पष्ट प्रतीत होता है। ग्राकृत का श्रथ प्रकृति से प्रचखित अर्थात्‌ स्वाभाविक है श्र संस्कृत का अर्थ है संस्कार की गई भाषा | इस विषय पर विशेष विवेचन न करते हुए इतना ही कहना झावश्यक है कि रामायण काल फे पहले पेदिक ओर शीकिक सप्कृत के उन दो भेदों के प्रतरिक्त पन्य किसी भाषा फा कह उल्ल नहीं भिता | रमायणे करे शह्ढा कांड में हनुमान सीता को सन्देश देने के पहते सोचते हैं कि यदिमं द्विजाति के समान संस्कृत भाषा मे बात करूंगा तो सीता युके बानर के रूप में मायावी -.राबण समझकर भवभीत हो जायेंगी |! इससे यह अनुमान किया जाः सवता है-करि उस समय उच वणां की मादृ-माषा संस्कृत थी और निम्न अणी के व्यक्ति ঘন अरणय-निवासी किसी अन्य असंस्कृत भाषा का व्यवहं(र करते थे | इससे यह तो निश्चित रूप से माना जा सकता है कि उच्च वर्ण--आहाण, क्षत्रिय और बश्य--संसक्षत भाषा का व्यवहार करते थे और राज-भाषा के रूप में उसका ही व्यवहार होता था। इससे यह भी. सहज ही समझता जा सकता है' कि जो इस भाषा का व्यवहार करते य्य बे इसे भलीमाँति समझा सकते थे | इसका उदाहरण संस्कृत के नाटक हैं ; जिनमें उत्तम पान इसी भाषा का प्रयोग करते हैं और दूसरे पात्र उसे भल्लीभाँति समफकर अपनी भाषा में उत्तर देते हैं। आज भी यह स्थिति देखी जाती है | इस विषय নয পপর: যাই कहां जा सकता है कि विक्रम' संवत्सर से लगंभग ७-८ शताब्दी पूर्व उत्तन्न भाषा-विज्ञान के महान्‌ विद्वान यास्‍्कमुन्ति ने अपने निक्त मे तथा उनके करं ही परवर्ती महर्षि पाणिनि ने अपने व्याकरण-शाघ्त्र में. संस्कृत के लिए भाषा शब्द ` का. प्रयोग किया है | बेंदिक भाषा के अतिरिक्त सभाज में प्रचलित जिस व्यावहारिक भाषा के, व्याकरण की रचना पाणिनि से की है, वह संरक्षत भाषा ही है | कुछ सौगों' का कथन. है कि 'पाणिनि द्वाश वस्कालीन प्रचलित भाषा को संस्कृत और एरेप्छत किसे जाने पर टुः थद संस्कृत भाषा कही जाने लगी। पराशिनि ने अपने समय नें बोली जानेब्ाली मापा का व्याकरण लिखा है) यदि चह व्यावद्वरिकत भाषा ने होती सो इसके जिए इतना चिश्तृतत . लिखने की आवश्यकता ही ने होती। पाणिनिं ने अपने रुमय में झनुक्त दोनेबाणे ४ब्दी . और मुहावरों, की संसत शोर परिष्यृत किया । पाणिनि कें-अनन्तर वरूूचि ने वार्तिक बनाकर भवीन शब्दों का संस्कार किया ) कारण यह है कि उनके समय में व्यावहारिक साधा सै नयेत , शब्द प्रश्ुक्त होगे लगे थे ; जो पाणिनि के छाल में प्रचलित नहीं थे | पाशिति के समये यवनानी' शब्द यबन की स्त्री के लिए प्रयुक्त होता शा, किस्सू बरदचि के




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