गुप्त जी के काव्य की कारुण्यधारा | Gupt Ji Ke Kavya Ki Karunyadhara

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Gupt Ji Ke Kavya Ki Karunyadhara by धर्मेन्द्र - Dharmendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জী छुमारो प्राचीन परम्परा के अनुसार 'कारुण्य' काव्य का मूल है, जब वाल्मीकि ने क्रौञ्च-युगरू मे से एक को व्याध हारा मारे जाते हुए देखा, ओर उनका हृद्य करुणा-रसं से आष्लाचित हभ, उसी क्षण उनके हृदय मे काव्य-धारा फूट पडी और इस प्रकार आदि-काव्य का प्रारम्भ हुआ । इसलिये गुप्तजी के काव्यों में कारुण्य-धारा की खोज काव्य की सर्वोत्कृट कसौटी की खोज है। अत्तः एतद्धिपयक प्रस्तुत मननात्मक रचना---अर्थात्‌ “शुघ्तजी के काव्य की कारुण्यधारा” के लिये हिन्दी साहित्य के प्रेमियों और अध्येताओ को श्री प्रोफेसर धर्मेन्द्र चर्मचारी, एम. ए. का अनुगृहीत होना चाहिये | सुद्धे अपने बाल्य-कारु सँ गुक्षजी ङी रचनाभो को पठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, ओर उनके द्वारा जीवन-स्फूर्ति सिली थो । गुप्तजी हमारे ष्य




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