भारतोद्वारक | Bharatodwarak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे पा चतुर्विशतिसाहल्नी चक्रे भारतसंहिताम्‌ ॥ व्यासनी ने २४०४० झोकों में भारत संहिता बनाई । वत्तेंसन ससंय में १००००१ एक लक्ष से झधिक झोक महासारंत में हैं ने सब व्यासरचित नही हैं यही दशा राभायणादि की है । दूत्री बात यह है कि रामायण भारत भागवतादि में लिखी सृष्टिक्मविरुद्ध छमम्सव बातें ते! साध्य पत्त में हैं । जिन को छान्य प्रमाणों से सिद्ध करना शाप का काम था । झाप ने” साध्य” ही को प्रमाण में घर दिया । न्याय शास्त्र में “साध्यप्रम” हेत॒ सो हेत्वाभास-सिथ्या हत माना है तो श्राप ती साक्षात्‌ साध्य ही को हेतरूप से प्रमाणकोटि में चरते हैं। असमधे मनष्य को इतना समय मानना कि अड्लि पर पवेत उठाया यही ते छसमभव है। आर उन सनुष्यों को देवर मानना साध्य है, सिद्ध नही। इसलिये स्टिक्रम का न सानना न्यायशास्त्र के ८ असायों में ७ वें सम्भव प्रमाण को शपने हुठ से न मानना है और सष्टिक्रम इंश्रक्रम सब ठीक है श्रीर उस के विरुद्ध बातों का मानना सुखता है ॥ अधथ पठनपाठनप्रकरणम्ू ॥। दृ० ति० भा० ए० ४९ पं० १६ से “स्वासी जी ऋषियों को पूर्ण विद्वान लिख कर भी उन के ग्रन्थों में वेदानकल मानना अन्य न मानना लिखते हैं इस लिये दे नास्तिक हैं क्यों कि 'वे कऋषिमप्रयीत आती क्त ग्रन्थों का शपसान करते ्प हैं। सन में लिखा है किः- योवमन्येत ते मूंठे हेतुशाख्राश्रयादू हिजः ॥ « स साधमिवंहिष्कार्यों नास्तिकों वेद निन्दकः ॥ जो वेद श्र शास्त्रों का शपमास करे वह वेदुनिन्द्क नास्तिक जाति पश्धि घर देश से बाहर किया जावे ॥ ग्र्युत्तर-पू्ण विद्वान ऋषि थे इस का तात्पय्य यह जह्ी हो सका फि वे बेद्प्रगता परसात्मा से श्थिक थे किन्तु मनुष्यों में वे पूर्ण विद्वान थे । उन के बेदविरुद्ू बचन को ( यदि उन के यन्यों में, उन का-वा उन के साम से पन्य किसी का कोट वचन वेद्विंरद् जान पड़े ) न मानना उन का शान पसान नहीं किनत सान्य है क्योंकि मन शादि ऋषि लिख गये हैं कि बेद- बाद रसति. साननीय नहीं । यथाः-- < या वेदबाह्या: रुमृतयों याश्व-काश्च कुहष्टयः । इत्यादि ॥ विनर




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