जैन पाठावली [भाग ७] | Jain Pathavali [Part 7]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अप्पां कत्ता विकता य, दृद्दाथ य सुद्दाण या
अप्पा मित्तममित्त चे, दृष्पट्टिय सुपट्िओं ॥शा
अप्या चेव दमेयब्यो, अप्पा हु खलु दुमो ।
अष्या द॑तो सुद्दी होई, अस्सि लोए ব্য य ॥३॥
घरं मे श्रा दतो, संज्ेणं सवेण य।
মাও प्रेहि दम्मते पंधेर वेदि य ॥४॥
जो सदं सहस्ाणं संगाभे दुज्जए भिये ।
एगं বিউউস भरप्पाणं एस से परमो লী |)
श्रष्पाणमेव जुज्फाईि, किंते जुन्फेण पत्मओ |
अप्याणमेव अपषाणं बनइचा सुहमेदए ॥ ६ ॥
पंविदियागि कों माणं पायं वदेव सोद च 1
. दुर्म चेष थप्पाणं सव्वमप्पे निए नियं 1७1
न त॑ं अरी कंठच्छेचा फरेइ, जं से करे अप्यणिया दुरप्पा
से नादिर मचुप्रहे तु पते प्च्याणुतायेण देपापिहुणो ॥८॥
_अस्सेवमप्पा उ हपेज्जा निच्छिओ चइज्ज देह नहु घम्मतासर्ण।
संतारित नो पयलेति इंदिया उवेति चाया व मुदंसणं गिरि।1६॥
भ्रष्पा हु खलु सय्य रक्खियव्वो सब्विदिएहिं सुसमादिए दि |
अरक्तिसिप्रो जाइपई उत्देश सुरक्खिभो सब्बदृब्याण
सुचर 1१०1
-सरीरमाष्टु : नायत्ति बीवो - बुच्च३ - नाविशो 1
संसारे -भरषयो वुत्तो घं ररंति मदेषिणों ॥१
ए
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