श्री रामकृष्ण वचनामृत | Shri Ramkirshan Vachanamart
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
692
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृक्तिणेश्वए में भौरामहण्ण का झग्म-मदोत्सव ष्
আনুন হী জী হান হী7% বন ক रहे हैं, ४ आपके साथ बात ने कर
स्रा, आज भटी भीष)
गिरीन्ध को देखकर भरीरामइणा ने बादराम पे कहा, ५ इन्दे एक
आसन दो । १ नृत्गोर्ाल को जमीन पर बैठा देखकर भीरामकृष्ण ने कह्ठा,
५ उसे मी एक आसन दो । ?
तीके मेदेत्ध देय आए हैं। भीरामकृष्ण ईंतत हुए राखाल को
इशारा कर रे हैं, ८ हाथ दिखा लो । ?
মী रामलाल से कह रहे हैं, “ गिरीश पोष के छाथ प्रेम कर, तो पिएटर
देल गा |» (हो)
নট হাজযা মহাহায উ ধ্যামই मै बहूव देर द बातचीत कर ष्टे
थे। नेएद्र के पिता के देहान्त के बाद पर में यड्ा ही कष्ट हुआ है। अब
नेरेद्र कमेरे के मीतर आकर येठे ।
श्रीरामकृण--( नेरद्र के प्रति )--द क्या हज क पास मेठा था}
यू विदेशी ६, और वह विरदही! द्वाजय को मी ढेढ़ हमार रुपयों की
আহ্াদন্করা £| (1)
४ हाजरा कहता $, *नेरेद्ध में खोल आना स्तोगुण आ गया है,
पनु र्येगुण क़ जण खाली ई । मेरा विद त, षन आन । * ( भी
की ईंसी | )
«| जब कहता हूँ, * तुम केवल विचार करते हो, इसीलिए शुप्क
हो, ? तो वह कता ह, दुवे की सुषा पीता हूँ, इसोलिए शक हैं।!
४ जब थुद्दा मक्ति को बात कहा हूँ, जब कहता हैँ कि श॒ुद्धा भक्ति
रुपया-पैसा, ऐश्वर्य कुछ भी नहीं चाइती, तो वह कहता हैं, * उनकी कृपा की
बाद ओने पर नदी तो मर जायेगी ही, फिर गढ़े-नाले तो अपने आप ही भर
जायेंगे। झुद्दा भक्ति भो होती ह और पदेश्व्रे भी होते हैं। रुपये-यैसे भी
होते है।? ४
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