श्री रामकृष्ण वचनामृत | Shri Ramkirshan Vachanamart

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Shri Ramkirshan Vachanamart  by श्री रामकृष्ण माधव - Shri Ramkrishan Madhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृक्तिणेश्वए में भौरामहण्ण का झग्म-मदोत्सव ष्‌ আনুন হী জী হান হী7% বন ক रहे हैं, ४ आपके साथ बात ने कर स्रा, आज भटी भीष) गिरीन्ध को देखकर भरीरामइणा ने बादराम पे कहा, ५ इन्दे एक आसन दो । १ नृत्गोर्ाल को जमीन पर बैठा देखकर भीरामकृष्ण ने कह्ठा, ५ उसे मी एक आसन दो । ? तीके मेदेत्ध देय आए हैं। भीरामकृष्ण ईंतत हुए राखाल को इशारा कर रे हैं, ८ हाथ दिखा लो । ? মী रामलाल से कह रहे हैं, “ गिरीश पोष के छाथ प्रेम कर, तो पिएटर देल गा |» (हो) নট হাজযা মহাহায উ ধ্যামই मै बहूव देर द बातचीत कर ष्टे थे। नेएद्र के पिता के देहान्त के बाद पर में यड्ा ही कष्ट हुआ है। अब नेरेद्र कमेरे के मीतर आकर येठे । श्रीरामकृण--( नेरद्र के प्रति )--द क्या हज क पास मेठा था} यू विदेशी ६, और वह विरदही! द्वाजय को मी ढेढ़ हमार रुपयों की আহ্াদন্করা £| (1) ४ हाजरा कहता $, *नेरेद्ध में खोल आना स्तोगुण आ गया है, पनु र्येगुण क़ जण खाली ई । मेरा विद त, षन आन । * ( भी की ईंसी | ) «| जब कहता हूँ, * तुम केवल विचार करते हो, इसीलिए शुप्क हो, ? तो वह कता ह, दुवे की सुषा पीता हूँ, इसोलिए शक हैं।! ४ जब थुद्दा मक्ति को बात कहा हूँ, जब कहता हैँ कि श॒ुद्धा भक्ति रुपया-पैसा, ऐश्वर्य कुछ भी नहीं चाइती, तो वह कहता हैं, * उनकी कृपा की बाद ओने पर नदी तो मर जायेगी ही, फिर गढ़े-नाले तो अपने आप ही भर जायेंगे। झुद्दा भक्ति भो होती ह और पदेश्व्रे भी होते हैं। रुपये-यैसे भी होते है।? ४




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