तुलसीदास चिन्तन और कला | Tulasi Das Chintan Aur Kala

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Tulasi Das Chintan Aur Kala by इंद्रनाथ मदान - Indranath Madan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डर नुत्सीदास * দিলল দীয নল प्रिगाम था। उन्होंते देखा हि राजापों में ग्रापस में पूट है, परस्पर- विरोध है भौर साम्राज्य मुसलमानों वे' हाथ म है। भीतरी गतह ने देश को बरवार गर रला है। सोग महाभारत मी रीति बरतने सगे है । भाई-भाई मे, बधु मित्र मे, परिवारी-ुद्धम्वी मे घोडी-योडी बात पर परस्पर वलह है । बाहरी बरी दवाए वँठा है। उस बरी से छुटयारे वा कोई साथन नहीं है । लोग निराश होबर उसवो भात्मसमर्पण बर रहे हैं। गोस्वामी जी ने इसे वड्ी गहरी ६८्टि से देशा थां, भौर वे चाहते थे जि इस रोग वी कोई दवा की जाए। हमारा विश्वास है वि यदि उस बाल में हिंदु-जनता में ज़रा भी दल होता तो तुलसीदास जी ने ब्वियात्मव रूप रे भाग लिया होता भौर वे राजनीतिय नेता हो गए होते भोर उन्होने श्रपना सारा रामय दत वात बे लिए लगाया होता वि हिंदू उठे সী श्रषने को सभालवर देश भौर जाति कौ रघा मरे! लेरिने निराया हिंदू-गाति के लिए व इससे झधिक कुछ नहीं चर सबते ये वि झपती लेखनी श दाविति बा उपयोग बरके ही जागृति वा मत्र दे जाए। यह अच्छा ही हुआ, क्योकि यदि ये साहित्यकार न बने होते तो उनके तत्कालीन नेतृत्य से हो हम लाभान्वित होते, जब कि झाज हमे इतने वर्ष बाद भी उनके विचारों से लाभ उठाने का अवसर है। तो हम यह वह रहे थे विः तुलसीदास जी ने झपने समय म॑ मुसलमानों की बटती हुई शक्ति को देखा था, उससे वे बढे परेशान थे । परेशान इसलिए थे वि उनता व्यक्तित्व हिटुत्व के लिए अपने को मिटा चुका था। बेजो कुछ सोचते थे, विद्याल हिंदू राष्ट्र की हृ्टि से ही सोचते ये । इसलिए उन्होंने अपने साहित्य के मथन द्वारा रामचरित चितामशि का पुवरुद्धार दिया और रामत्व का मत्र दिया । यह रामत्व है बया ? भगवाब्‌ ने गीता में कहा है कि जब जब धर्म की हानि होती है तव-त्व धर्म के अम्युत्थान के लिए, साधुओं वे परित्रास्य के लिए और दुष्टात्माश्रा के विनाश के




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