मोक्ष मार्ग प्रदीपिका | Mokshmarga Pradeepika

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३)
पह चन्तं आदि इन्द्रियो से प्रप्त नदीं होता, वहं खयं नि-
श्ल हुआ, सव जीवों को नियम से चलाता ओर धारण
करता है। उसके अति सूक्ष् और इन्द्रिय गम्य न होने के
कारण धमात्मा विद्वाव. योगी को ही उसका साज्षाव ज्ञान
होता है दूसगें को नहीं ।
॥ नज़्म में ॥
नहीं चलता हुआ भी ब्रह्म, मन से तेज्ञ चलता है!
नहीं हैं इन्द्रियाँ उस के, परन्तु वह विचरता है॥
वह व्यापक है इसीकारण, मली विधि सव जगह हाज़िर।
अचल है वह मगर फिर भी, सभी को पार करता हे ॥
पदारथ सव चलित जो हैं, उलेघन उनको करता है ।
उसी में छत्नात्मा वायुं, कम धारण भि करता दै ॥
वही है वायु के अन्दर, वह जल धारण भी करता है|
वही तो मेघ बन कर के, तृपत संसार करता है॥
पो 01 | 9००००»
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