पुस्तकालय प्रबन्ध | Pustakalay Prabandh

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Pustakalay Prabandh by एस॰ डी॰ व्यास - S. D. Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 पुस्तकालय प्रबन्ध पहचानन की गलती न हो । इसके लिए आवश्यक है कि उसके पास व्यक्ति ज्ञानवान हो। प्रबन्ध के सिद्धान्तो का अध्ययन से हम छोरी-छोरी गलतियो से बच सकते है एव सम्भावित खतरा एव परिणामो की जानकारी हो सकती है । प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्ध कौ ताकत हे ये सिद्धान्त इस प्रकार से सहायता करते ই जैसे एक सिविल अभियन्ता के लिए ऽ(ला्(ौ1 ज 10181 की सारणी । इस सारणी मे दी गई सूचनां मूलभूत सत्य है जो कई वर्षो के अनुभव तथा जाँच पर आधारित है । एक अभियता इसी आधार पर किसी भी भवन कौ जच कर सकता है कि यह भवन कितना भार वहन कर सकता है तथा इसी सारणी का उपयोग कर उसक अभिकल्प (1265187) का भी विश्लेषण करता है । प्रबन्ध के सिद्धान्त कोई अधिनियम नही है! सिद्धान्त एक प्रकार से परिकल्पना (८7016515) है । एेसे सिद्धान्त--(1) व्यावहारिक होने चाहिए जिनका उपयोग किसी भी समय किया जा सकता हौ (2) जो सम्पूर्णं दृश्य से सम्बन्धित हो एव (3) अनुकूल (अला) हो ताकि एक ही प्रकार कौ स्थिति मे इनका उपयोग किया जा सके । कुल मिलाकर इन सिद्धान्तो का उपयोग है--प्रनन्ध के कार्य को सरल बनाना । 3 प्रबन्ध का অশী 05521115 0611217250706170) प्रबन्ध शब्द एक व्यापक शब्द है जिसे आधुनिक व्यावसायिक एव औद्योगिक जगत म कई अर्थो मे प्रयुक्त किया जाता है--(1) सकोर्ण अथवा सकुचित अर्थ मे “' प्रबन्ध ' दूसरे व्यक्तियो से कार्य कराने की युक्ति है। इसके अनुसार वह व्यक्ति जो अन्य व्यक्तियो से कार्य करा सकता है वह “'प्रबन्धक'' कहलाता है। (2) व्यापक एवं विस्तृत अर्थ मे “' प्रबन्ध कला एव विज्ञान है जो निर्धारित लक्ष्यो की प्राप्ति के लिए विभिन मानव प्रयासो से सम्बन्ध रखता है । इस अर्थं मे प्रबन्ध मे निम्नलिखित कार्य सम्मिलित होते है-- नियोजन सगठन समन्वय निर्देशन, अभिप्रेरणा नियत्रण तथा नींव निर्धारण । प्रोफेसर थियोहेमन ने प्रबन्ध के निम्न तीन प्रचलित अर्थो का उपयोग किया है--(1) प्रबन्ध अधिकारियो के अर्थ मे, (2) प्रबन्ध विज्ञान के अर्थ, मे एव (3) प्रबन्ध प्रक्रिया के अर्थमे। (1) प्रथम दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध से आशय सामान्यत प्रबन्ध अधिकारियो से होता है जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित इकाई मे कार्य करने वालो के कार्य पर नियत्रण स्थापित किया जाता है। (11) द्वितीय दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का आशय एसे विज्ञान से होता हे जिसमे व्यवहारिक नियोजन सगठन, सचालन, समन्वय प्रेरणा तथा नियत्रण से सम्बन्धित सिद्धान्तो का वैज्ञानिक विश्लेषण होता है । (111) तृतीय दृष्टिकोण के अनुसार--प्रबन्ध शब्द का अर्थं एक प्रक्रिया के रूप मे लिया गया है जिसके अन्तर्गत अन्य लोगो के साथ मिलजुलकर कार्य किया जाता है। अत प्रबन्ध एक विज्ञान एव कला हे जो एक सस्था के सामान्य लक्ष्यो की प्राप्ति हेतु विभिन व्रयक्तियो के व्यक्तिगत एव सामूहिक प्रयासो के नियोजन सगठन निदेशन समन्वय अभिप्रेरणा एव नियत्रण सम्बन्ध रखता है ।




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