गुजरात के ग्रामदान | Gujarat Ke Gramdan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५९ * शुजरात के मामदान
साधन के बिना किसका अटका है ?
आंबालग गाँव का किसान षटवारी के अन्याय के विरुद्ध फरि-
येद लेकर अया 1 उश गोद के ज्यगीरदार के नाम चिट्ठी लिखी
गयी । किसान चिट्ठी छेकर गया तो जागीरदार साहब ने यूछा फि
वे कभी कदो? किसान ते बताया कि अभी तो देषो में घूमने
निकछ गये हैं और सकान के लिए कुछ छकड़ी जुटाने की वात
करते थे ।
* पटवारीको चुखवाकर उन्दने किसान को न्याय दिलयाया
और बूसरे दिन, जून मद्दीने की उस कड़ी धूप में वे क्षिक्षित
ज्ञागीरदार रणजीत सिहज्जी ९८ मील .साइफिल पर चलकर দাতা
पहुँचे, भाई को अपने गाँव ले गये और छोटा-सा स्वागत समारोह
तीन मंजिडा मकान अपेब् किया।
इैश्वर-झसाद के रूप में आप्त उष पुराने राजप्रसाद कासारे
मल्या हिरण नदी के सामने किसारे पर रंगछुर गाँव की घगरू की
झाड़ियों में; पहले जडाँ इस प्रदेश फे राजा और रियासतदार जंगत्टी
जानवरों के शिकार के लिए आते थे, उसी जमीन पर वाया
गया और देखते-दैेण्स्ते थोड़े दिनो में, अपनी चैलगाड़ियों से मलबा
ठोनेवाले अगलू-बगलछ फे गाँवों फे उन फिसानो ने ष्टी दो-तीन
मकान राड़े कर दिये $
इस प्रदेश की जिंदगी में अब तक यहाँ फी प्रज्ञा का न फोई
अपना स्थान था और न कोई अपना जादमी था। चस! अप्र
इल्दीने (आश्रम! के रूप से अपना स्थान पाया और “भाई” के रूप
में अपना आदमी पाया ; क्षेत्र फी साधारण जनता में चारों ओर
खुशी फी लछद्दर दौड़ गयी !! ०
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