रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया | Reserve Bank Of India
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुद्रा एवं साल फा नियमन - १
विदेशी विनिमय प्रारक्षण का मुख्य उद्देश्य देश को अदायगी शेष की प्रतिकूल अवस्था
पर काबू पाने योग्य बनाना है। भारत में विकास योजनाओं हारा दिये जानेबालछे
प्रोत्साहन के फलस्वरूप आशिक क्रियाओं में द्रत्प्रगति तथा अर्थव्यवस्था कै द्रव्य पर
আমাহির লগ (10096186থ 5696০:) के विकसित होने के कारण मुद्दा में
अत्यधिक प्रसार की आवश्यकता पड़ी है। योजना के अर्थ-प्रबंधत के लिये भी वेक के
विदेशी प्रारक्षण की भारी माग आवश्यक हुई। इन परिस्थितियों की उत्पत्ति की
पहले से आशा होने के कारण, सन् १९५६ के रिज़्वे बेक आफ इंडिया (संशोधन)
एक्ट में, जो ६ अक्टूबर सन् १९५६ से ल्यमू हुआ अनुपातिक प्रारक्षण प्रणाली
(9০7০0070700 1399০ 85৫70) के स्थान पर केवल न्यूनतम मात्रा में
विदेशी प्रारक्षण, ४०० करोड़ रुपये विदेशी ऋणपत्रों में, तथा ११५ करोड़ रपये
स्वर्ण मुद्रा तथा स्वर्ण में, अथवा कुल मिला कर ५१५ करोड़ रुपये, की व्यवस्था की
गई। साध ही, जहा ६ अक्टूबर सन् १९५६ से पूवं चेक के स्वर्ण का मूल्य ८. ४७५१२
ग्रेन प्रति रुपये या २१. २४ रु. प्रति तोले* की दर से निर्धारित होता था, संशोधित
एबट में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विधि द्वारा निश्चित अधिकारीय समान मूल्य (011०
एषण एप०९), अति २.८८ ग्रेन शुद्ध सोना प्रति रुपये या ६२ ,५० रु. प्रति
तोला की दर से पुनर्मूल्याकन की व्यवस्था कौ गई । यह परिवर्तन पूर्णतया औप-
चारिक था तथा इसका उद्देश्य अधिकारीय समान मूल की दर से वेक के स्वर्ण भडार
का मूल्याकन करना था। इसके फलस्वरूप, स्वर्ण के मूल्यांकन के साथ साथ, स्वर्ण के
रूप में रखे जानेवाले न्यूनतम प्रारक्षण की सात्रा ४० करोड रुपये के स्थान पर ११५
करोड़ रुपये स्थिर की गई। परिसपत्ति के संघारण सबधित व्यवस्था में, ३१ अक्टूबर
सन् १९५७ को, एक अध्यादेश द्वारा, जिसका नाम “ रिजवं बैक आफ इंडिया (सदो.
धन) अध्यादेश १९५७ ” था, तया जिसका रिजवे बेक आफ इडिया (द्वितीय सशोधन )
एक्ट, १९५७ ने स्थान ले छिया, पुन परिवर्तेन किया गया । इस एक्ट में निर्देशन
था कि प्रचालन विभाग के पास स्वर्ण मुद्रा, स्वर्ण एवं विदेशी ऋणपत्र कुल मिलाकर
किसी समय २०० करोड़ रुपये के मूल्य से कम के नही होने चाहिये; इसमें से स्वर्ण का
मूल्य (धातु तथा मुद्रा मिलाकर) ११५ करोड रुपये से कम नहीं होना चाहिये था
अर्थात् उतना ही जितना अध्यादेश के जारी होने से पूवं भा!
जैसा अन्य केन्द्रीय बेके के परिनियमों में है पहिले से पता न चलनेवाली विकट
परिस्थितियों का सामना करने के छिये विदेशी विनिमय निधि से सबधित नियमी को
स्थगित करने की व्यवस्था भी रखी गई हैं । १९५७ के द्वितीय सशोधन एक्ट के अतर्गत
रिजर्व बेक को अधिकार है कि केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति लेकर, विदेशी ऋणपत्रो
को अपने पास बिलकुल व रखे, परतु उसके पास ११५ करोड रुपये का स्वर्ण होना
आवश्यक हूँ)
* एक तोका एक आंस फा ३८ भाग हैं ।
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