मजदूरी नीति एवं सामाजिक सुरक्षा | Majaduri Neeti Evam Samajik Suraksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
351
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8 मजदूरी नीति एवं सामाजिक सुरक्षा
बी कार्यशील जनसख्या, श्रमिको वी कार्यदुशलता, कार्य करने के धण्टो वी संख्या
झौर देश की जनसस्या मे वृद्धि की दर झ्रादि । देश की जनसख्या में वृद्धि होते पर
तथा कार्यशील जनसल्या का भाग अ्रधिव होने पर श्रम की पूर्ति मे वृद्धि होगी तथा
कायंकुशलता मे वृद्धि होने पर भी श्रम की पूर्ति के गुणात्मक ণতুলু (04211190156
5०४८७) पर भी प्रभाव पड़ेगा । श्रम के कार्य भ्राराम भनुषात (१४ण५-.९३ए०
२10) तया श्रमिक सथो (६५९ ए ०5) का भी श्रम की पूर्ति पर महत्त्वपूर्ण
সমান पडता है ।
श्रम की पूति निम्नलिखित प्रमुख तत्त्वो पर निर्मर करती है--
1. मजदूर दर (\+2&< 1२21९} --यदि मजदूरौ ऊंची होती है तो भधिक
श्रमिक कार्य करना चाहेगे शौर परिणामस्वरूप श्रम की पूर्ति एक उद्योग से दूसरे
उद्योग की भ्रोर होगी । यही कारण है कि श्रम की पूतति और मजदूरी दर में सीधा
सम्बन्ध होता है । इसके विपरीत निम्न मजदूरी दर पर कम श्रमिक कार्य करना
चाहेगे भौर श्रम की पूर्ति कम होगी ।
2, भ्रम्षिकों को कार्यकुशलता--कार्यकुशलता भ्धिक होने पर उत्पादन पर
वैसा ही प्रभाव होगा जैस कि श्रम की पूति बढान पर भ्रधिक उत्पादन सम्भव
होगा । इतके विपरीत वार्यकुशलता कम होने पर भ्रधिक श्रमिक लगाने के बावजूद
भी उत्पादन भ्रधिक प्राप्त मही क्रिया जा सकेगा ।
3 कार्य एवं भाराम भनुपात (१४०४ & 1.,28ए7९ २५०} --यदि
श्रमिक कम श्राराम श्रौर भ्रधिक कार्य करना चाहता है तो श्रम की पूर्ति बढ़ेगी श्रौर
यदि अधिक ग्ाराम व कम काय॑ करता है तो श्रम वी पूर्ति घटेगी । मजदूरी बढने
पर श्रमिक अधिक आराम भी कर सकता है या अधिक कार्य कर सकता है। यह
मजदूरी बढने का प्रतिस्यापन प्रभाव (59৮51100100 ০6৩০৫ ০6000058560 ४३8९
१७1९) कहलाता है। इस स्थिति म मददूरी मे वृद्धि होने पर श्रम का पूति वक्र दापू
ऊपर की ओर उठेगा क्योकि श्रमिक मजदूरी बढने के कारण श्रध कार्य करेगा
दूसरी शोर मजदूरी बढ़ने पर श्रमिक अधिक श्रारामतलबे भी हौ सक्ता है जिसके
परिणामस्वरूप श्रम पूतति वक ऊपर उठने की बजाय बाई श्रोर भका हुआ (82০1০
আগা 8९00८0६) होमा ब्मौर यह मजदूरी वृद्धि का भराय प्रभाव (17९0 0५1)
फटा जाएगा 1
अल्पकाल की तुलना मे दीघंकाल मे श्रम को पूर्ति भ्रधिक लोचदार होती है
क्योकि--
(4) जनसख्या के भाकार मे वृद्धि होती दै, भौर
(४) श्रम की कार्यकुशलता मे वृद्धि से श्रम की पूर्ति वढ जाती है ।
श्रम बाजार
(प्त न्थ)
श्रम बाजार वह बाजार है जहाँ पर श्रम का क्रय-विक्रय किया जाता है प्रथा
म को बेचने वाले (श्रमिक) व श्रम को खरीदने वाले (मालिक-नियोजक) श्रम का
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