जैन धर्म में अहिंसा | Jain Dharm Men Ahinsa

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Jain Dharm Men Ahinsa by श्रीमान ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Shriman Bramhchari Seetalprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[२] भ बुला किया मौर फारसी$ मिडन पास करवाकर नंग्रेनी १ढनेके ढिए रंगमहर स्कूल्में दाखिल करवा दिया। सन्‌ १८८२ पं सर हरी तस्फसे ड क्टरीमें १ढ़नेवाले लड़कोंकों १०) माद्ृबारका बनीफा (90015:810 ) निवत्त हुवा था जर उदं मिल. तककी शिक्षवाले लड़के छिए जाते थे । भापक्लो भी छा० घासी- रामजीने ड कटरी श्रेणी में दा खिछ करवादिया। जब सजेरी (88०७9) पढ़नेवाले कमरेमें सब जमाअत गईं और एक काश पोस्टमार्टम (9208 ঠ৫57৮00 ) के लिए काईं गई । पोध्टमाठम होते देख कर डाकटरी पेशेमे घृणा हो गई जोर अपना नाम जमाभतमेंसे कटवा- कर घरपर भा गए और का० घाप्तीरामजीसे कहा कि मेरेसे मुर चीरनेका छाम नहीं होगा, सो फिर अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करनेके छिए स्कूकमें दाखिक हो गए । कुछ दिन पीछे छा० घासीरामनीकी तबदीढ़ी शिमलेक़ी होगई। बह इनको बिना खबर किए शिमकेको चले प्रेस कार्यमें पदापण। गए । जब झामको घरपर न भाए तो दृश्षरे दिन गधवर्नमैंट प्रेपस्ते छा० घासी/मजीके मित्र विक्षियम साहबसे भम्तढीयत॒का पता छगा । विकियम साहबको जब डाक्टरीडी जमाभतसे नाम क्टबानेक बाद नाराजगी! व वेपहरे होनेकी बातें बतई गई तो विछीयम साहिबने शिमकेका पता बताया, जौर चिट्टी ढिखी। जब १०, १०, दिनतक जवाब नहीं भाबा तो मापने हिम्मत नांघकर विकिमम साहिबसे प्रेतक्ा काम सिखछानेको कहा । उन्‍होंने मेत्का काम सिलक्वाना शुरू किया, ओर झापने




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