तत्त्वार्थसूत्र - जैनागमसमन्वय | Tattvarth Sutra - Jainagam Samanvay

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Tattvarth Sutra - Jainagam Samanvay by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) व्याख्यात'र । तस्मादन्ये हीना इत्यथ ॥ ३६ आचार्य हेमचन्द्र का समय विक्रम कां १२बी शताब्दी सभी बिद्रानों को मान्य रै। ्मापके कथन से यह भली प्रकार सिद्ध हो जाता है कि पूज्यपाद उमास्वाति सथह करने वाले में सबसे बढकर सप्रह करने वाले माने गये है । आगमी से सग्रह किये जाने से यह अन्थ भी समप्रहग्रथ माना गया है। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि भगवान्‌ उमास्वाति ने सम्रह किस रूप में किया हैं ? इसका उत्तर यह हे कि इस ग्रन्थ में दो प्रकार भे सम्रह किया गया हैं । कही पर ता शब्दश सप्रह है अर्थात्‌ आगम के शब्दों को ससस्‍्कृत रूप दे दिया गया है ओर कही पर अथसग्रह है अर्थात्‌ आगम के अर्थ को लक्ष्य मे रखकर सूत्र की रचना की गई है। कही २ पर आगम में आये हुए विस्तृत विषयों को सक्तेप रूप से वरान किया गया है । स्मागमो मे किम प्रकार इस शान का उद्धार क्रिया गया




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