आत्मावलोकन | Aatmavalokan

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Aatmavalokan by दीपचन्द जी काशलीवाल - Deepachand Ji Kashalival

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( > ) सत्तापनां स्तुका लक्षण तत्तापना यानी अविनाशीयनाही द्रव्य (वस्तु ) का लक्षण झाचायोंने किया है जैसे “सत्‌ द्य लक्षण ओर अपनी अवस्थाओंकोी पलटते २ ही द्रव्य (वस्तु) अनादि अनन्त कायम रह सकता है इसलिये सत्ताकी सिद्धिक्रे लिये आचायोने “उत्पाद व्यय ध्रौव्यं युक्त सत्‌” का है यानी द्रव्य (वस्तु) हरएक समय अपनी सत्ता कायम टिकाये रखते हवे मी अपनी परव अस्था (पर्याय) का व्यय करके नवीन अत्रस्था ( पर्याय ) को प्राप्त करता रहता है। श्राचार्योनि “गुणपयेय वदूद्र्यम्‌ के द्वारा यह सम्झाया है कि गुण (शक्ति) पर्याय (अपस्या) सहित ही वस्तु होती ठे अर्थात्‌ शक्ति और अवस्थाओंके त्रिना वस्तुका अस्तितर ही नहीं होसकता । पर्याय मी निरचयनय से स्वयं सत्‌, अहेतुक है उपरोक्त कारणोंसे यह सिद्ध हुआ रि ससारमें हरएक वस्तु अनत गुणों (शक्तियों) को धारण करती है ओर हर एक शक्ति समय समय अपनी अवस्थाओकों पलटती २ अनादि अननत वस्तु को कायम रखती है । कोई समयभी ऐसा नहीं हो सकता कि झत्रसस्‍्था पलटने ब्रिना रहजात्रे तथा कभी पेता मी नदीं हो सक्ता कि है समय में २ श्रवस्थाएँ होजाव क्योंकि द्वव्यकी जो अवस्था




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