बचपन | Bachpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
511
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सपना देखा था। भेरी आंखों से फिर आंखुझों की झठी लगे गयी, और
इस बार उसका कारण दूगगा ही था। जब कालं इलानिच चना गया
तो में प्॑ंग पर उठकर बैठ गया और अपने छोटे पैरों में शोणे चढ़ाने
लगा। भेर श्रु रत्र श्रमं चले ध, पर उम झूठे सपने ল मत में उदासी
बा असर प्रान दिया धा। द्यादवाः निकोलाई हमारे कमरे में आगा।
वह् च्ल, साफ मधरा, नाया आदेगी था जिसका संजीदगी, सुस्थिता
शेर शिप्टला कभी साथ नहीं छोड़ती थौ । काले इबालिब के साथ उसनी
मित्रता थी। वह हाथ-मुह धोने के बाद बदलने के हमारे वापडे
ख्रौर जूते लाया था। वोनोद्या बूट परनन था, पर मेरे लिए गअभी भी
फदनेदार भन ही उपयुक्त समघ्ने जानं भै यद्यापि उनकी सूरत देखने से
ही मुझे चिढ़ होती थी। में नहीं चाहता था कि वह मुझे रोता हुआ देखें।
नेहली किरणें स्पिड्की
के नर उत्फुल्ल धूप विखेश रही थीं ओर बोजोया उधर मार्या
इवानोवना ( मेरी बहिन की अभिभाविका ) की नक़ल कर रहा था। मुंह
धोने की चिलिमची के पाक्ष खड़ा होकर वह इतने जोर से हंस तथा
उछल रहा था कि शांत और संजीदा लिकोलाई के-जं कथे पर
तौलिया, एक हाथ में सावन और हूसरे में चिलिमची सिये खड़ा धा
चेहरे पर भी मुंसकराहुट आ गयी। वह बोला बस, धम! व्गादीमिर
पैत्रोविच श्रव धौ लो मुंह-हाथ! “
मरी उदासी भी रफ़्चककर हो चुका थी।
पाठशाला वाल कमरे से कार्ल इवानिच ने पुकारा - 80५ ७0 ॥॥।०
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उसको प्रवा में अनुशासत की दुृढ़ता थी, सुबह की संवेदनशील
झाटता नहीं, जिसने सुझे इला दिया था। पाठशाला में काल इवासिच
मुझे झर्म लग रही थरी। साथ ही, वातरवि की
छोटे बच्चों का ख़बारा | -से
“^ [तैयार हो गये या नहीं तुम लोग? |
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