मानव और संस्कृति | Human And Culture

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव का अ्रध्ययन १५ उसकी शक्ति है) वह्‌ जधिकांशत: सीमित आदि-समाजों का अध्ययन करता आया है। ये समाज छोटे और सुगठित होते है । उनकी संस्कृतियाँ सरल एवं सुक्षगठित होती ह । सीमित परिधि तथा रघु जनसंख्या के कारण इन संस्छृतियों के रूप में स्थिरता होती है और समाज तथा संस्कृति के आदर्श प्रायः निश्चित होते हैं इन मानव-समूहों मे सामाजिक रीति-नीति का उरल्घन करने वाले व्यक्तियों को संख्या अत्यंत अल्प होती है। अतः इन समाजों में संस्कृति के रूपों की जटिल विविधता हमें दृष्टिगत नहीं होती । इन कारणों से व्यवित तथा संस्कृति के पारस्परिक संबंधों का विश्लेषण इन समाजों में सुविधापूर्वक किया जा सकता है। प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों का यह एक अलिखित नियम है कि जहाँ तक संभव हो, अनुसंधान सरल से आरंभ किया जाकर क्रमशः अधिकः उलझी हुई संस्थाओं और समस्याओं की ओर उन्मृख किया जाय । नृतत्व-बेत्ता सरल आदि-समाजों का अध्ययन करके अधिक विकसित समाजों के अध्ययन की पूर्व पीठिका प्रस्तुत कर रहे हैं । पिछले दो-तीन दशकों में नृतत्व के अ्रध्ये- ताभों ने जटिल संस्क्ृतियों तथा आधुनिक समाणजों के कतिपय महत्त्वपूर्ण अध्ययन भी किये हैं । भाषा-ब्ास्त्र का नृतत्व से निकट का संबंध हैं। भाषा मानव की संस्कृत्ति का एक महत्वपूर्ण अंग होती है । अतः: सांस्कृतिक नृतत्व के अध्ययन में. उसका स्थान होना अनिवाय॑ है, किन्तु नृतत्व के अंतर्गत आने वाले उप-विज्ञानों में भाषा-विज्ञान अपेक्षाकृत स्वयं पूर्ण और स्वतंत्र है। भाषा तथा उसके स्वरूप और गठन का अध्ययन जीवन के अन्य पक्षों से अलग भी सरलतापूर्वक किया जा सकता है । आदि-संस्कृतियों सं भाषाओं की विविधता तथा उसके स्वरूप की जटिलता में अनुसंधान की सीमाहीन सामग्री है । प्रारंभिक दृष्टि से भाषाओं के विकास का विश्लेषण तथा गठन के आधार पर उनका वर्गीकरण अत्यंत आवश्यक है। शब्द और भाषा दोनों अपने-आप में अन्तिम रूप से स्वयं पूर्ण न होकर उन वि्चिष्ट समाजो की सांस्कृतिक चेतना पर आधित - रहते है जिनमें उनका विकास होता है। शब्द व्यवित और.संमाज की चेत॑नाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः भाषा के माध्यम से नृतत्ववेत्ता को उन समाणों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन की बहुमूल्य सामग्री प्राप्त हो सकती है । जिस तरह भाषा के स्वरूप का विद्लेषण हमें सांस्कृतिक समस्याओं के मर्म तक पहुँचने - ... में सहायक हो सकता है, उसी तरह संस्क्ृतियों के गठन तथा उनकी प्रक्रियाभों संबंधी ज्ञन से हमें भाषा-शास्त्र की कतिपय उलझी हुई समस्याओं को समझने में भी सहायता मिल सकती है। इस तरह स्पष्ट है कि भाषा-आास्त्रज्ञों और नृतत्ववेत्ताओं ¦ ५




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