आत्म प्रबोध [भाषा टीका] | Aatma Prabodh [Bhashateeka]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषा दीका । (१५) झर्थ--सत्य बोलना, तप करना, इन्द्रियों को रोकना, से भूतप्राणियों के ऊपर दया रखना यही वराह्मण का लतक्तण जानना इस माफिक शुण सहित होवे तो ब्राह्मण जानना नहीं तो शुद्ध के समान जानना चाहिये फ़िर भी यहां पर विशेषता दिखरलादे है श्लोक--शूद्रोपी शीलसंम्पंन्नों गरुणवानत्रह्मषणो भवेत | ब्राह्मणोपी क्रिया रीना शूद्रौ वत सभो भवेत ॥ भये--पदि सुद्र जाति राला शीलशान हबे गुणवान एवे तो ब्राह्मण ল্য হী स्ता ै, ब्राह्मण भी क्रिया हीन हदे तो शुद्र फे समान जानना चाहिये इस लिये लिखने छा मतलद यह है कि जाति का कोई कारण नरीह पष्टुभी निस्वयनय करके जानना लो क्रिया बान ह षी व्राह्मण हो सक्ता र हान ङी श्ौर क्रियाङी मुख्यता सवं जगह रही हुए हे उस हानक्रिया दिना गुरू भी हो गया परंतु दिर नहीं सकताइस लिये ्राएतो तिरे भोर दूसरे षतो तारे दह से गुरू जानना चाहिये तथा ऋपतो विशेष सेदन करे भौर दूसरा भक्त सेरन करे दोनो ररादर हो गये सो दिखलाते हैँ ॥ गाधा--दुह्नवि विषया सत्ता दुन्नवि धन धन्न संगह समेया । सीस शुरू सम दोषा तारीजयीभणस को के एण ॥ इप- दोनों द्यी दिषय मे सासद्त और दोनों के धनघान्द का संदप्रह ररारर हो | रह् हे दया शिश्प और गुरू के दोए ररारर हो रहे हैं हो यो दौन दिसक्षो मार सत्ता रे श् रस्ते दो शुरू शुद पाएष्टनी को पारण करता हूं दण एीे छेदल शानियों या कद हुशा मुझे प्रमाण है भोर पमे ममाण नहीं क्वरण एक पूर्तीपना करके बिरट रिपरीतभाषण रूरनेराले सदेह नाम घराझे दिएरादशरनेदाले उन्‍्हों की दिप्रीददा दिखलानेरे रिश्वू पद में दिश्यु मुलभष्टी रापरेरें कोर शिवमत में शिरमूल थप्टि रहते रे शुद्ध भी एसच जल আমন ক টীজারী ইদীঘ মী হুক হালা হী রক্ষী বার লাবী যৃত্র घान्या টা जादी है फिर नर शुण का उच्देद ऋर॑ता भौर ऋषरों झा नाश दरना भक्तों को शर देने राले शन लरूणों सहित सरेह ইউ টা জনি ফল বাই জান হযিন্র ছল শী ইস কা माफिक जान ইলা ঘাটি ऐसे दिएरीद भाएट बरनेदाले सदड नहीं पत सश्च হস रास्दे सिरे केरलो कशित एरम भेष्ठ रे रशंरर हएरू, हरेर, छुपे, इन टीनों झा रिप्रोदपना भी इतलादा इनशो হাত জন্রল কবে ক भरारएने राटा उने ट




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