महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का सर्जनात्मक साहित्य | Mahapandit Rahul Sankrityayan Ka Sarjanatmak Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
381
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम खरड़ | पहला पारवत
महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
(क) महापण्डित राहुल का व्यज्ितत्व
पद्मभूषण” अन्तर्राष्ट्रीय युगपष्डित राहुल साइत्यायन ने हिन्दी माया भौर
साहित्य को शितना कुछ दिया है, उतना शायद ही किसी भकेले व्यक्ति ने दिया हो ।
हिल्दी-साहित्य का कई भी ऐसा भ्रंय नही जिसडो उन्दोनि श्रषनी तियो द्वारा सम्पन्न
न॑ बताया हो । उनका साहित्य विपुल है, उनका व्यक्तित्व विराद भौर विचित्र । उत
जैसा श्रद्मुत एवं विलक्षण व्यक्तित्व रछने वाले साहित्यकार নিলে ही होते हैं ।
पण्डितं रामगोवि द भिवेदी के शब्दों मे, “महापण्डित राहुल জী ग्रपनी शैली के अ्रद्वितीय
पुष्प हैं। उनका साहस भ्नुपण था, उनरी धर्म-मावना विचिन घी, उनका व्यवहार
अनूठा था। उनका सामाजिक विचार झनोखां था और भाये-संस्टृति के प्रति उनकी
हृष्टि प्रपूव यो। बैंदिक साहित्य, हिन्दू भ्राचार-विदार, हिन्दू-सम्यता, भारतीय-
इतिहास, मांगरी-लिपि, हिन्दी भाषा आदि के सम्बन्ध मे उनका मनन विलक्षण भौर
विचक्षण था। मतलब यद कि राहुल जी वेलक्षण्य के झ्राकर थे 1 वस्तुत' राहुल जी
का व्यक्तित्व बहुमुखी था, उसकी अन्वितियाँ विविध थी | वह महामानत्र थे, जिनका
देशम दिन्दो-निष्टा मे जीवित भ्रवाह पा गया था, जिनका सेद मृत्यु तक प्राप्या-
चित ग्रौर अतृप्त वेना रहा, जिनके पाण्डित्य की हिमानी के नीचे लोक-हृदय की
(नर्भारिणी निरन्तर भरती रही, जिनको ज्ञान की पूर्णदा से प्रधिक ज्ञान वी निरम्तरता
दी बिस्ता थी, जितडी विस्मृति भी निरछल ममता की घाटा बने गई ।* राहुल जी
का व्यक्तित्व किसो विशेषण-विशेष बी परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। बौद्ध,
कम्युनिह्ट, ग्रायंसमाजी, मायावर, इतिद्ासज्ञ, दार्ध्निह्-ये सब विशेषण राहुल जी
के व्यक्तित्व बरौ ग्रायत्त करने में असमर्थ हैं। राहुल जी का व्यक्तित्व गत्यात्मम है,
सत्य वा भनुसन्धित्यु है। डॉ शिवप्रसाद सिह के झबशे में 'राहुल ने त्रिसी मी मत
को मत के लिए स्गीक्ार नहीं रिया। उन्हें बुद्ध वा यह कथन सदा याद रहा,
“मैने तुम्हे मंदी पार बरने के लिए नाव दी थी । पार हो जाने पर उते सर বয় তা
करदे के लिए नही। राहुल ने इस कथन की दास्तवित्तता वो समझ ही नहीं,
अपने कय्यों में मती-माँति उतार मी लिया था। उतत्री नावें হাত যী, কিল जहाँ
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