संगीतांजलि भाग ६ | Sangeetanjali Bhag-vi

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Book Image : संगीतांजलि भाग ६ - Sangeetanjali Bhag-vi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे स्पा में लिए यद उल्तेए थावश्यय £ हि हमारे संगीशाप़ो में 'ंद' शब्द था तीन प्रव रणों में मिप्न-मिष्न परी में प्रयोग मित्तण है। पथा:-- (१) संवाद, वियाद सथा धनुवाद--स्परो पे इन निधिय राम्वन्धो मे प्रपरण में । (२) जाति मे दश सक्षणों थे श्रपरण में जो हम भभी ऊपर देस छुपे है । (३) भलंवार प्रपरण में । या इन तीनो प्रव रणों मे 'ंशा' शब्द में पिमिप्न श्रथे असित्रेत हैं। उनरा स्प्टीगरण मिम्नोत हैध (१) संबाद-पिप्राद-अनुयाद प्रकरण में थंश भरत ने सप्म्वरों के नामोल्ठेस के पथ्यातु उन स्वरा जो चनुविष बताया है--वादी, संचादी, पियादी पौर भदुगादी ।. संवाद, विवाद भौर झनुवाइ--पें स्वरों ये परस्पर शम्बख्ध पे थोतर हैं। इन सम्बन्धों मी म्याी में लिए दो-दो स्वरों वी जोडियाँ थायश्पर होती है। पोई भी अदला स्वर निरपेत भाव थे संवाद, सवार या भा पा म्रहिनिधि नहीं हो सबता पयोरि स्परा के संबादादि सम्दन्य नियत्त धसरालों के धोत है भौर 'घन्ठया ह सिद्धि वें लिए दो स्वरो थी जोडी श्रनियाय है। इन दो स्वरा मे ते जिस स्वर यो धायार मान पर दूसरे सार ही संवाद, विवाद था अनुवाद सम्बध स्थापित पिया जाएं, भववा जाचा जाए, उसी स्वर वो 'बादी' यहा है। ही “वादी' वो समझते हुए भरत ने महा है.--'यो यम अंग स तस्य ( तत्र १ ) चादर । ( ना शा० रेप ) ध्रयाद--जब जिस स्वर को श्राधार मान पर दूसरे स्वर के साथ रॉवाद, बित्राद या श्रनुवाद संवर्ध स्पार्णि लिया नाएं, बही श्रापार स्वर भश या (10 0तेकाए 011६0) स0० है भौर वही वादी कहलाता है। उदाहरण डे लिए 'सा-म' की स्वर जोडी में शा को झंश था साधार मान फर-वलने से 'सा' घादी और *म उसया संदादी बन कर 'म-्मी' की स्वर-जो्ी में 'म' को श्रंश या श्रावार मानने में 'म' वादी भौर शो” उत्तका सवादी महलाएगा 1. (ने ही * अन्य संब्ादी, निवादी श्रौर मनुवादी स्पर-जोडिया के लिए भी सममना चाहिए 1 इस प्रभरण में भ्रेंश स्वर के बास्तदिव बर्थ दो न रामभकते के वारण ही राग -लक्षण में “राग के मम स्वर को वादी कहा नाने लगा, उससे थपेक्षाउतत बम म्रद्नल स्वर वो संबादी, सहायव स्वरों सो झुवादी तथा रियर स्वरों को बिवादी कहा जाने सगा। राग-लक्षण के अन्तगंत इन पारिमापिक शब्दों के प्रयोग से इनवें स्वरान्तराल-सर्व शालनीय भर्ष की संपत्ति नहीं रह पाई। उदादरण के लिए प० भातखण्डे ने थीयग मे कोमल नपम भौर पतम मो +. सादी-ंवादी बताया है आर ऐसो ही झन्य स्वर-नोडियो वो सो नई रागों में बादो-्संवादी वहा है, जितमें संग सम्पन्थ हो ही नहीं सबता।. चास्तव में भरत ने 'वादी” के पर्याय के रूप में जहाँ 'प्रंश' का प्रयोग यह कह कर रिया है, “यो यत्र अंश स तस्य चादी” चहाँ जाति या राग के श्रमुख या प्रधान स्वर से कोई सम्बन्ध मददी है! यह स्पष्ट है कि रागलझण में 'ादी संवादी भनुवादो वियादी” स्वर भाषा का प्रयोग भ्रशास्रोय है। भरतोफकत जि के दश लक्षण मा ही राग-लक्षण में प्रयोग साल्नोय हृप्टि से उचित भीर ग्राद्य है । थे 1. (२) “जाति के दश उत्तणों के प्रकरण में अंश “मर, जाति के दर लक्षणों में से धन्यतम है भर उसे जाति था प्रधानोभूत स्वर कह कर उसके भो पी क्षण दिए गए हैं, थे हम ऊपर देख ही चुके है । र ( दे ) 'अलंकार गफगण में अंश ४. हदें भलवारों में लक्षण देते हुए मतंग ने भलंगार के श्रद्येक टुबडे के शारंभक स्वर वो “प्र महा हैं! दाइरए के लिए--




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