स्वर्गीय हेमचन्द्र | Swargiy Hemachandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)কই
हैं। साथ ही उनकी बुन्देखखंडी योलीकी स्वाभाविक मधुरताका पुंट भी उसमें
दिया हुआ है ।
दैमचन्द्रकी स्पष्टवादिताके ये उदाहरण हमारे आडोचकोंके लिये अनुकर-
णौय हैं | देमचन्द्र जैनेन्द्रजीको बढ़े माईके समान ही आदरणीय मानता था,
पर जजके आसनपर बेठनेके बाद वह अपने पूज्य दादाजीकी मी रियायत
मही कर सकता था । साहित्यिक शिक्षताके पीछे यह लड्डू लिये घूमता था
क्योंकि उसकी दृष्टिमें यह नैतिक निबलताकी जननी थौ ।
प्रत्येक मानवका स्वसंत्र व्यक्तिस्थ
आज सम्पूर्ण संसारमें जो भयंकर विग्रह हो रहा है ओर ओ अनाचार हो
रहे हैं उन सबके मूलमें हे कुछ मनुष्योंकी यह निन्दनीय प्रदृत्ति कि वे जन-
समुदायको केवल अपने ठञ्जप ढालना चाहते हैं, अपने देईपर चल्गना
चाइते हं । ओर चूँकि संसारमें भेड़ोंका ही वाहुल्य है, इस लिये इन डिक्टे-
टरॉको अपने असदुद्देदामे सफलता सी मिल जाती है | इसीलिये किसी भी
विवेकशील पाठककी तबीयत हेमचन्द्र जैसे युवककों देखकर खुश हो जाती,
क्यों कि वह किसौकी भी भेड़ बननेकों तय्यार नहीं था। अपने प्रिय विषय
अराजकवादका भी मुझे कितना उथला ज्ञान है, इसका पता देमचन्द्रके पत्रोंसे
लगा यद्यपि मुझमें इतना नेतिक बल नहीं था कि उसके सामने अपनी झर
मान लेता । “ अपनी कद्दे जाना और दूसरेकी न सुनना” इस अमोष
असरसे जब मँ हेमके पूज्य दादाजीको ही अनेक वाद-बिवादोमिं पराजित
कर चुका था, तब देमसे पराजय स्वीकार करनेकी उदारता मुझमें कहाँ थी १
इतने दिनों बाद उसके पत्रोंको पढ़कर मैं अनुभव करता हूँ कि उसके द्वारा
की हुई मेरी आयोजनाओंकी आलोचना यथार्थ थी।
प्रेमीजीकी यह भूल थी ( और उसे स्वीकार करके उन्होंने प्रायश्रित्त भी
कर लिया है ) कि वे हेमकों कोरमकोर अनुवादक या व्यवसायी बनाना
चाहते थे जब कि उसकी प्रतिभा स्वाध्यायशील स्वतंत्र-विचारक बननेकी
थी। अनेक माता-पिताओंसे यह भूल हो जाती है, इसलिये प्रेमीजीका
अपराध क्षस्य ही था ।
भगिनी निबेदिताने अपनी मृत्युके पहले किसी बोद्ध अन्यसे एक प्राना
अँग्रेजीमें अनुवाद करके अपने मित्रोको मेजी थी :-
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