तीर्थकर चरित्र | Tirthkar Chritra
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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लेते ही धर्मराज्य--आत्मलक्ष्मी साधने में तत्पर हो गए और संयम तथा तप के प्रवल
पराक्रम से घातिकर्मो को सवेथा तष्ट कर के स्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् बन गए ।
भगवान् का निर्वाण
भगवान् श्री प्रजितनाथजी के ९५ गणधर हृए । मुनिवर एक राख, महासती मंडल
तीन लाख तीस हजार, ३०५० चौदह पूरवधारी, १४५० मनःपयेवन्नानी, ९४०० अवधि-
ज्ञानी, २३००० केवलज्ञानी, ३२४०० वादी, २०४०० वैक्रिय लब्धिधारी, २९८६०००
श्रावक और ५४५००० श्राविकाएँ थीं । दीक्षा के बाद एक पूर्वांग कम लाख पूर्व व्यतीत
होते, अपना निर्वाण काल उपस्थित जान कर प्रभु समेदशिखर पर्वत पर चढ़े । उन्होंने एक
हजार श्रमणों के साथ पादपोपगमन अनशन किया। एक मास का अनशन पूर्ण कर के
चेव्-शुक्ला पञ्चमी के दिन मृगशिर नक्षत्र मे चन्द्रमा आने पर, पर्यङ्कासन से प्रभु अपना
हत्तर राख पूवे आयु पूणं होते मोक्ष पधारे । इन्द्रौ ने प्रभ का निर्वाण उत्सव किया।
भगवान् श्रौ अजितनाथ स्वामी अठारह लाख पूर्व तक कुमार अवस्था में रहे ।
तिरपन लाख पूर्व और एक पूर्वांग तक राज किया। बारह वर्ष छद॒मस्थ रहे और एक
पूर्वांग तथा बारह वर्ष कम एक पूर्व तक केवलज्ञानी तीर्थंकर पद का पालन कर मोक्ष
पधारे ।
दूसरे तीर्थकर
भगवान्
॥ अजितनाथजी का चरित्र सम्पूर्ण
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