गुरुमत दर्शन | Gurumat Darshan

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Gurumat Darshan by शेर सिंह - Sher Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कभी कभी दर्शन और धर्म घामिक रचना मे ताने-बाने को मान्ति मिल जाते है, विशेषतत उस समय जब कि ग्रुरु-पअवतार विवेक- बुद्धि रखते हुए ज्ञानवेता भी हो। यह बात भारतीय मतो मे विशेष रूप से देखने मे आई है। “यहाँ धर्म एव दशंन अन्य देशो की अपेक्षा बहुघा परस्पर मिले जुले है*। इस सम्मिश्रण का परिणाम सदैव ग्रच्छा नही निकलता । खोखली दार्शनिक विचार-धाराये, और परम सत्यवादक गहराइया कई बार धामिक जीवन को नष्ट कर देती है। ऐसे समय मे दर्शन और धर्म दो भिन्न सिन्त मार्गो प्र चलने लग पडते है) एमे धर्मावलम्त्रियो मे से कुछ तो ज्ञान, बुद्धि और सूफ के बल पर “साहिब की सेवा करके सम्मान प्राप्त करते है।” कुछ प्रेमा-भक्ति एव शद्धा-उपासना का मार्गं पकड कर हदय के कोमल हावो-भावो के द्वारा सहंज सुख का आनन्द प्राप्त करते है । भाव यह कि मस्तिष्क और हृदय के दो भिन्‍न भिन्‍त मागगे बन जाते हैं। ये दो मार्म यद्यपि एक दूसरे से सम्बन्ध विच्छेदतो नही करते परन्तु फिर भी प्रत्येक सागे एक पहलु पर अधिकतर बल देता है और दूसरे अ्रग को गौण समझ कर ही छोड देता है । हम सिवख (सिख) धर्म का दाशंनिक विवेचन करने लगे है । इस घर्मे का मुरस्य प्रयोजन जीकन-मागे है, जोवन-पथ विचार नही । मनुष्य जीवन और ग्राचरण को ग्रादर्शभय बनाने का ढंग यह धर्म वताता है और जीवन, आचरण या आदर्शो की परम सत्यवादक ()७४९६४- 9०719५1८४) ) खोजो के चक्र मे जीवन यात्रियो को नही डालता | परन्त इस धर्म की नीव बहुधा शुद्ध बुद्धि या तके-वितर्क की श्रपेक्षा श्रद्धा एव प्रेम तथा विवास पर निर्घारित दहै । किन्तु श्रद्धा तथा निङ्चवयको पक्का एवे दढ करने के लिए यह्‌ आवश्यक है कि इनको नीव विवेक बुद्धि पर रखा जाए { 1 अन्ध विज्वास बहुत देर तक काम नही देता और वैज्ञानिक (5८16) ) कमीटियो परर पूरा नही उत्तरता! इसलिए वास्तविक # (७०० 19 03717001907, ৮5 & ५ (७000, 17 छाटए210 99९ 019 ০1 1২672£1057 (प 1511010৭ 1 हार परयो पश्नामी के दुझार दीज बुद्धि थिवेफा । (सोरठ महत्रा ५)




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