आजादी का अलख | Aajadi Ka Alakh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
221
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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को लेकर वतमान के ययायं को आात्मस्रात करते हुए वे युगानुकूल अभिव्यक्ति के
संसाधनों को तलाजने में असम्थे रहे । किन्तु इसके विपरीत बीसवीं सदी के
पूर्वाद्धि में राष्ट्रीय चेतना से सम्पृक्त जो काव्य-धारा प्रस्फुटित हुई, उसने कवियों
की निदो अनुभूति एवं संवेदना के कारण ऐसी अभिव्यक्ति एवं शिल्प को जन्म
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इन रचनातओं में जहां एक ओर देश-भक्ति एवं स्वाघीनता-प्राप्ति की
ग्राकांक्षा के स्वर मुखरित हुए, तो दूसरी ओर विभिन्न राजनीतिक आस्दोलनों
ओ्रौर लोक-जागरण की प्रद्धत्तियों ने भी अभिव्यक्ति पायी। चेतना के विभिन्न
स्तरों का स्पर्श करते हुए इन रचनात्रों में गांधीवादी जीवन-दर्शन से प्रभावित
विचारों को व्यज्जित किया गया है, तो स्वावीनता प्राप्ति के लिए शक्ति के प्रयोग
का भी आह्वान किया गया है।' आगे चलकर रूस की ऋाच्ति के वाद इन
रनाग्रों पर समाजवाद का प्रभाव भी देखा जा सक्ता दै 1
राजस्थान में राजनीतिकं चेतना और स्वाधीनता-संग्राम का स्वरूप भले
ही ब्रिव्शि आसित प्रदेशों से भिन्न रहा हो, किन्तु यहां के प्रदुद्ध साहित्यिकों,
लेखकों और कवियों के समूचे सृजन को अपनी स्थानीय विशिष्ट्ताओं के साथ
भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक परिवेश में ही देखा जाना चाहिए, क्योकि
उनके इप्टि-क्षेत्र में केवल राजस्थान ही नहीं, अपितु पूरे राप्ट्र की परिकल्पना थी ।
इस सन्दर्भ में सबसे पहले हम देशानुराग की उदवोधक रचनाओं को लेते
हैं । इस संबंध में यह दृप्टव्य है कि जब किसी भी देश में राप्ट्रीय चेतना का
प्रादुर्भाव होता है, तो सवसे पहले उसकी अभिव्यक्ति देशानुराग के रूप में होती
जब देश के निवासी अपनी पृथक् पहचान और विदेशी आक्ांता से भिन्न
अपनी विशिष्ट सामाजिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परम्परात्रों को उजागर
करने के लिए आकांछ्षित होते हैं । उतका अपने अत्तीत के प्रति मोह-भाव जागृत
होता है और वे अपने पुरखों के पुण्यों और उन्तके महान् कार्यो की कीतति-कथाओं
का बखान करके अपनी वर्तमान दुर्दशा से उबरने को उत्कठित होते है ।९
০৮ ১
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=
1. सुवेश, आधुनिक हिन्दी और उद्ू काव्य की प्रदृत्तियां, दिल्ली (1974)
पृष्ठ 245
2. चही पृष्ठ 246
3. गोबिद्द प्रसाद शर्मा, नेशनलिज्म इन इन्डो-एंग्लीकन पिपणन, एु1 ०) ी
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