सामाजिक मानवशास्त्र | Samajik Manav Shastra

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Samajik Manav Shastra by आर॰ ए॰ पी॰ सिंह - R. A. P. Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। | । | सामाजिक मानय्रशास्त्र: अध्ययन पद्धतियाँ (विधियाँ) एवं प्राहव 7 ई ए জীব (9 4, 10০৩১০.) উই मित्र इन प्रिभिटिंव वल्ड मे लिखा है कि मानवशास्त्र मावव एवं उसके सम्पूर्ण कार्यों का अध्यमन है! व्यापक श्रो में यह मनुष्य कै प्रनाहियौ (८२८९७) एव प्रयामो (ण्डा) का अध्ययन है 1 इन प्रथाग्नो मे हम सामाजिक व्यवहार का प्रवलोकन करते हैं, और चूंकि मानव- शास्त्र प्रथाओ का विज्ञान भी है, इसलिए यह एक सामाजिक विज्ञाव होने के साथ- साथ एक प्राइतिक विज्ञान (पंबप्याथं 5ट०7०८) भी है 1” रात्फ वील्स ने भी मानवशास्त्र को 'एन इन्ट्रोडक्शन हु सोश्यल एन्यपोलोजी' में परिभाषित करते हुए लिखा है कि “मातवशास्त्र मनुष्य के शारीरिक भौर सॉस्कृतिक विकास के निमरमो तथा सिद्धान्ती वा अनुसस्धान करने वाला विज्ञान है ॥ १ टर्नीहाई ने अ्रपनी कृति “जनरल एथोपोलोजी” मे लिखा है कि “मानवशास्त्र शाब्दिक प्रथे में मानव विज्ञान है । मासनवश्लास्त्र सम्पूर्ण सानव का विवश्णात्मक, तुलनात्मक एवं सामान्यात्मक भ्रध्ययत है) इसमे मानव शरोर-रुचनाशास्त्र, शरीर इएस्थ प्लौर मनोविज्ञान के कारक एव वह्‌ सस्कृति सम्मिलित है जो उनकी श्रावश्यकताओं के प्रत्युत्तर में प्रवाहित होती है, झाते हैं ।”* टी. के पन्चिमैन का मानना है कि “मानवश्चास्त्र मानव का विज्ञान है। एक हृष्टिकोश से यह प्राइ्तिक इतिहास की एक शाखा है जिम्तके अन्तगंत जीव प्रकृति के क्षेत्र मे मावव की उत्पत्ति और स्थान का अध्ययन आता ই | दूसरे इष्टिकोए से, मानवशास्प्र इतिहास का विज्ञान है 1३ डॉ एस. सी, दुबे ले श्रपती कृति 'मानव और सस्कृति/ मे लिखा है कि “प्राशिशास्त्र की शार के रूप मे मानवजास्त्र प्राचीन तया झाधुनिक भाव के विभिन्न समूदो की शारीरिक रचना एव भ्रक्रियाभो की समानतामरों तथा भिन्नताओं बा विश्लेषण और वर्भीकरण करता है । दूसरी ओर एक सॉस्कृतिक- सामाजिक भ्रध्ययम के रूप में वह इसी प्रकार विभिन्न सेस्क्तियों की सरचता तथा प्रक्रियाप्रों का प्रध्यपन करता है ।/* उपयुक्त पारिभाषिक विवेचनाम्रो के शाघार पर मह तिष्कर्ष निकाला ला सकता है वि मानवश्ञास्त्र मूलतः मनुष्यों का ग्रब्ययन है झोोर भी स्पष्ट विधि से मातदशास्‍्त्र ये प्र्थ को हम निम्नौकित बिन्दुओं मे रख सकते हैं-- (1) मानवज्ञास्त्र मनुप्य वा प्रव्ययन ग्रादिकाल से लेकर उसके समकालीन काल तक उसके मिज उद्विक्यस (5४017107) को ध्यान में रखते हुए करता है। (2) मानवध्चास्‍्त्र विभिन्न मानवीय समूहों में पाई जाते वाली समानता एवं विपमता का भध्ययन दरता है 1 (3) मानवशास्त्र मनुष्यों के प्राशिज्ास्त्रीय सामाजिक एवं सास्टितिक्‌ वि्ञास के नियमों द सिद्धान्तों दा भ्ष्ययन बरता है । २१६१ 5८45 ২ 8১5 10০08500260 5০০৩1 জ ৪৮৫০6০1088৮ চি 20, 7५ 3 ना দি (60 #0०:्रारुणल्इ१, | 1 2; क ककत ; 4 1199681९व ४६57३ ए 01210০০1085, 0০ 13-45 1 ও 4 0. 9. €. 2.4९) 2 উ1503% ২০৫ 55058050 (51007) 50 2




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