झाँसी जनपद के आर्थिक विकास का विश्लेषणात्मक अध्ययन | Jhanshi Janapad Ke Aarthik Vikas Ka Vishleshnatmak Adhyayan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
94 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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1. राष्ट्रीय आय वृद्धि मापदण्डः- प्रो मेयर एव काल्डविन कुजनेट्ख यगन तथा मीड
जैसे विकासवादी अर्थशास्त्रियोँ ने किसी देश की राष्ट्रीय आय मेँ होने वाली वृद्धि को उस देश
के आर्थिक विकास का सूचक माना है । अन्य शब्दों यदि किसी देश मेँ वास्तविक राष्ट्रीय
आय में वृद्धि हो रही है तो यह वृद्धि उस देश के आर्थिक विकास की कसौटी मानी जायेगी
बशर्ते कि वृद्धि निरन्तर व अस्थायी न हो ।
2. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि मानदण्ड :- राष्ट्रीय आय विचार के विपरीत आधुनिक समय
में अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मत है, कि राष्ट्रीय आय आर्थिक विकास का सही मापदण्ड नहीं
है बल्कि देश में प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि को उस देश में आर्थिक विकास के
अभिसूचक के रूप मेँ स्वीकार किया जाना चाहिए । इसका कारण यह है कि अल्पविकसित
देशो मे मुख्य समस्या जीवन स्तर मं सुधार करने की होती है ओर जीवन स्तर का प्रत्यक्ष
सम्बंध प्रति व्यक्ति आय से होता है | इसीलिए जनता के आर्थिक कल्याण व जीवन स्तर में
वृद्धि की दृष्टि से किसी देश का आर्थिक विकास तभी माना जायेगा जब उसमें प्रति व्यक्ति
आय में वृद्धि हो रही है |
प्रो० पाल बरन के अनुसार “आशिक वृद्धि की परियाषा थौतिक वस्तुओं की एक निशचित काल `
में प्रति व्यक्ति प्रदा की वृद्धि के रुप में की जानी चाहिए /
बरुकनेन तथा एलिस का भी यही विचार है । उन्हीं के शब्दों में “आर्थिक
विकास से आशय पूंजी निवेश के उपयोग द्वारा अल्पविसित देशों की वास्तविक आय
सम्भावनाओं को विकसित करने की दृष्टि से एसे परिवर्तन लाना व ऐसे उत्पादक स्रोतों को
बढ़ावा देना है जो प्रति व्यक्ति वास्तविक आय बढ़ने की सम्भावना प्रकट करते हँ ।“
प्रति व्यक्ति आय के पक्ष में तर्क :-
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर यदि समाज मेँ आय का वितरण असमान रहा हो तो बाह्य
दृष्टि से भले ही इसे आर्थिक विकास मान लिया जाये वास्तव मेँ यह आर्थिक विकास नही
विषमताओं का विकास माना जायेगा ।
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