सिद्धान्त समीक्षा भाग 2 | Sidhant Samischha Bhag 2

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
89
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१११
ह निर्जाभ कर देता है, इसते वड ङ्गी पयौय को प्राप्त नीं
करता। सी दरामि द्रव्य सरी मुक्ति नहीं पा सकती । षह वेद नाम-
कमै अद्युम है, इसका प्रमाण यइ है कि सम्यक्टष्टि जीव क्ली पथौय
नही पाता । स्वामी समन्तमद्राचार्यने स्वराचित रत्करण्ड श्रावकाचार् मे
डिखा दै--“ सम्यग्दशनशुद्धा नारकतियड्नपुंसकर्नीत्वानि ” इसे
प्रोफेसर सा० ने नहीं विचारा । प्रभाचन्द्रजी ने खुलासा लिखा है
कि तदूभव मोक्षगामी भी वही जीव दैै जिसने प्रूवे भव में स्त्री
बेद को ( अशुभ कर्मों में ) निर्जीणे कर दिया हो ।
,. (७) एक बात यह भी है कि उत्कृष्ट ध्यान थाला दी मोक्ष
प्राप्ते करता है | उत्कृष्ट ध्यान का संबन्ध वज्रशूषभनाराचसंदनन से
है | वही जीत्र उत्कृ४ दुष्यान से सप्तम नरक जाता है | यह बात
स्त्रीवेद में नहीं है | उसी प्रकार उत्कृष्ट सद्ध्यान उसी सेहनन-
वाले को मोक्ष प्रापक है । यह संहनन स्त्रियों में नद्दीं पाया जाता ।
तब किस कम सिद्धान्त के आधार पर आप द्रव्य स्त्री को मोक्ष
कद्दते हैं ।
(६) दिगबर सिद्धांत निश्वेक संयम से मोक्ष मानता हि|
सचे संयम मोक्ष का प्रापक नहीं, क्योंकि स्त्रियां कभी वस्त्र नहीं
छोड सकतीं, इसलिये भी उन्हें मोक्ष की व्यवस्था का समयन
नहीं बनता ।
श्री प्रभाचन्द्रजी ने छिखा है ( देखिये प्र. क. मातेड पेज
ने, ३३१ नया एडीशन ) * किद्न बाह्याभ्यंतर-परिप्रह-परित्याग!
सयमः, स च याचन-सीवन-ग्रक्षाठन-शोषण-निक्षिपादन-चैरदरणादि-
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