सिद्धान्त समीक्षा भाग 2 | Sidhant Samischha Bhag 2

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Sidhant Samischha Bhag 2  by जीवन्धरजी शास्त्री - Jeevanandharji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१११ ह निर्जाभ कर देता है, इसते वड ङ्गी पयौय को प्राप्त नीं करता। सी दरामि द्रव्य सरी मुक्ति नहीं पा सकती । षह वेद नाम- कमै अद्युम है, इसका प्रमाण यइ है कि सम्यक्टष्टि जीव क्ली पथौय नही पाता । स्वामी समन्तमद्राचार्यने स्वराचित रत्करण्ड श्रावकाचार्‌ मे डिखा दै--“ सम्यग्दशनशुद्धा नारकतियड्नपुंसकर्नीत्वानि ” इसे प्रोफेसर सा० ने नहीं विचारा । प्रभाचन्द्रजी ने खुलासा लिखा है कि तदूभव मोक्षगामी भी वही जीव दैै जिसने प्रूवे भव में स्त्री बेद को ( अशुभ कर्मों में ) निर्जीणे कर दिया हो । ,. (७) एक बात यह भी है कि उत्कृष्ट ध्यान थाला दी मोक्ष प्राप्ते करता है | उत्कृष्ट ध्यान का संबन्ध वज्रशूषभनाराचसंदनन से है | वही जीत्र उत्कृ४ दुष्यान से सप्तम नरक जाता है | यह बात स्त्रीवेद में नहीं है | उसी प्रकार उत्कृष्ट सद्ध्यान उसी सेहनन- वाले को मोक्ष प्रापक है । यह संहनन स्त्रियों में नद्दीं पाया जाता । तब किस कम सिद्धान्त के आधार पर आप द्रव्य स्त्री को मोक्ष कद्दते हैं । (६) दिगबर सिद्धांत निश्वेक संयम से मोक्ष मानता हि| सचे संयम मोक्ष का प्रापक नहीं, क्‍योंकि स्त्रियां कभी वस्त्र नहीं छोड सकतीं, इसलिये भी उन्हें मोक्ष की व्यवस्था का समयन नहीं बनता । श्री प्रभाचन्द्रजी ने छिखा है ( देखिये प्र. क. मातेड पेज ने, ३३१ नया एडीशन ) * किद्न बाह्याभ्यंतर-परिप्रह-परित्याग! सयमः, स च याचन-सीवन-ग्रक्षाठन-शोषण-निक्षिपादन-चैरदरणादि-




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