आध्यात्मिक आलोक | Adhyatmiake Aalok

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Adhyatmiake Aalok by नाना लालजी - Nana Lalji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिये मृल्यांकल की कसौटी है एवं नाशवान्‌ तत्त्वों की ओर आकर्षण है तो उसे सव्‌-चित्‌-प्रानदघन की अनुभूति नही हो सकती है । | ग्राध्यात्मिक चिन्तन-मनन ्रौर ्रात्मा तथा परमात्मा की चर्चा-वार्ता आदि विपय मात्र धर्मस्थानो तक ही सीमित नही हैं। ये तो तिन में तेल की तरह सावंकालिक है, प्रतिक्षण के जीवन के श्रग है। इनके स्वर को सुनिये । आ्राध्यात्मिक-चिन्तन सर्वेजनहिताय है, सव जीवों के कल्याण के लिये हैं। यह सबके मन को पवित्र बना कर अन्तज्योति जगाता है । आध्यात्मिक जागृति का कार्य वस्तुत श्रेष्ठतम कार्य है परन्तु इसके लिये वही व्यक्ति तत्पर हो सकता ह जो जिन्नामु है। व्यक्ति के जीवन को आधारशिला आध्यात्मिक-परम्पराये है। भौतिक उपलब्धिया व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य, भौतिक समृद्धि और प्रवराय की श्रमिवृद्धि मे सहायक हो सकती है लेकिन इतने मात्र से टी व्यक्ति का अस्तित्व सार्थक नहीं माना जा सकता है । उसके निये प्रावश्यक्ता है--श्रात्मानुगासन की, ्रात्मकेन्द्रित होने की और आध्या- লিক प्रवृत्ति की । पूर्वोक्त वक्‍तव्य का आधार परम श्रद्धेय आचार्यश्री जी म० सा० के प्रवचन है। श्रपनी बौद्धिक क्षमता से जिस हूप मे और जितने श्रयो में श्राचाययंश्री जी के भावों और विचारों को समझ पाया हैँ, उन्हे एक सूत्रधार की तरह अपने शब्दों मे यहा प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। परम पृज्य आचार्यश्री जी के प्रवचनो के भावों और विचारो को अपने अब्दो मे श्रकित करना दुस्साहस ही माना जायेगा भर है भी । परन्तु इस प्रयास का कारण है-- सप्ते श्रुतवता परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते वलःन्माम्‌ । पत्कोकिल किनि मघो मुर्‌ विरति, तच्चा प्र-चारकलिका- निकरंकटेतु ।। आध्यात्मिक आलोक' मे सकरलित सभी प्रवचन, विभिन्न प्रसगो वो व्वास्या करते है पर्तु इनका समग्र-स्वर भ्राघ्यात्मिक विकास, [७




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