चिद्विलास | Chidwilash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ६१५ ) वस्तुधर्म सापेक्ष कैसे ? यहां कोई कहे कि, वस्तुर्थ्म सापेक्ष है, तुम निरफेश्ष कैसे बहते हो ! उत्तर - हम वस्तुकों सापेक्ष ही सिद्ध करते हैं, जैसे वस्तु 'स्वसहाय है” यह कहनेमे ही यह सिद्ध होगया है कि वस्तु परसहाय नहीं है” ओर जब यह कहा कि “परसहाय नहीं है?” तो सहज ही यह भी सिद्ध होगया कि “पर भी कोई वस्तु अपना ध्वतन्त्र अस्तिख रखती है” आगर आकाशर्म पृष्पके समान पर कोई वस्तु ही नहीं होती तो “परसहाय नहीं है” यह किकल्प भी उत्पन्न नहीं होता, इसलिये वस्तु धर्म सापेक्ष है, क्योकि किसी एककी अस्ति सिद्ध करनेसे ही न्य सत्रसे नास्ति क श्रपेक्ता श्रा जाती है यह वस्तुक) स्वरूप है | पर्यायका कारण स्वपर्याय ही ह । उपरक्त कथनके अनुसार जब वस्तु स्वतः परिशामनशील है तो उसकी सभ्ये की पर्याय स्वतः सिद्ध एव स्वसहाय होनेसे उसके कारश कार्यपना कुंछ नहीं रहा ¢ उत्तः यथार्थतया तो धह पर्याय स्य हीस्वयं काकार ই और स्वयं ही स्वयंका कायै ३ । शुद्धिकी धपेत्षा भी लीं जावे तो भी उसी समयकी पर्याय ही यवार्थतया स्वयं उस पर्यायक्री शुद्धिका कारण है, जैसे किसी अनादि मिध्याईंष्टि जीबको जिस समय सम्पादशन प्राप्त इुआ तो ওঁ समयके पहले समयक्री र्थायर्म तो- मिथ्यादशन था वह




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