महाकवि ब्रह्म जिनदास कृतित्व | Mahakavi brahm Jindas Vyaktitv Evm Krititv

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahakavi brahm Jindas Vyaktitv Evm Krititv  by प्रेमचंद - Premchand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

Read More About Premchand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{3४} जा सकती है । इंस दृष्टि से भारतोय साहित्य की विभिन्न प्रदृत्तिगो भौर धारा्रों को इसमे पुष्टता ओर गति सिली है। विभिन्न साषाप्नों के साहित्य के इत्विहासों को भी जैन साहित्य के कथ्य और शिल्प ने काफी दूर तक प्रभावित किया है । हिन्दी साहित्य की झाध्यात्मिक चेतना को प्राज तरू जाडुत शौर क्रमबद्ध रखने सें जैन साहि- तय की दाशेनिक संवेदना की महत्त्वपुर्णा भूमिका रही हैं । यहां हमने साहित्य की जिस अ्न्तश्वेतना भशौर महत्ता की शोर संकेत किया है, उका प्रतिनिधित्व करते है- -पन्द्रहुवी शती के लोक्‌ कवि ब्रह जिनदास' । ये विद्यापति और कबीर के समकालीन थे । यह युग भाव भाषा म भ्रालोडन-विलोडन का युंग था। शास्त्रीयता के बन्धन खुल रहे थे धौर प्रतिष्ठित हो रही थी मानवीय गरिमा और उसकी सहज (देशी) भाषा । विद्यापति ने देसिल बप्नना सब जन मिट्ठा' कहकर लोकभाषा के प्रति प्रपती निष्ठा व्यक्त की । ह्य जिनदास ने भी कहा--जिस प्रकार बालक कठोर नारियल का कुछ उपयोग नहीं जानता, लेकिन साफ करके उसकी गिरी देने से वह बड़े भ्रानन्‍्द से उसका स्वाद लेता है, उसी प्रकार देश भाषा में कही गई बात सर्व सुलभ एबं लोक भोग्म बन जाती हैं-- कठिन नालीयरने दीजि बालक हाथि, ते स्वाद न जाणे । छोल्या केल्यां द्वाख दीजे, ते गुण बहु माणे ॥ --झाविधाय रास इसी भावना से प्र रित होकर महाकवि ब्रह्म जिनदास ने संस्कृत के प्रकांड पंडित होकर भी भ्रपना भ्रधिकांश साहित्य हिन्दी में लिखा । हिन्दी साहित्य के इति- हास में बे भ्रकेले ऐसे कवि हैं जिन्होंने विविध. विषयक लगभग ४५० “रास' संशक काव्यों का सृजन किया। लोक भाषा में तुलसी से पूर्व 'राम रास” (र. काल, सम्बतु १५०८) की रचना कर ब्रहम जिनदास ने हिन्दी राम काव्य परम्परा का सूत्रपात भ्रौर लेतृत्व किया । रूपक काव्य परम्परा में 'परमहंस रास” को पअ्रपनी विशिष्ट छवि श्रौर भंगिमा है । ठेवा सशक्त भौर व्यापकं प्रनुभवों का धनी 'महाकवि ब्रह जिनदास' परब तके पांडुलिपियों में ही लुप्त था। मैरे निर्देशन में डॉ प्रंमचन्द रांवका ने इस ग्रंथ के माध्यम से इतं कविं के व्यक्तित्व भौर कृतित्व का पहली बार सभ्यक्‌ परीक्षण शौर मूल्यांकन किमा है । इसके लिपे ভা रांधक्रा को जयपुर, उदयपुर, द णरपुर, ऋषभ देव झादि स्थानों के हस्तलिखित श्रन्थ भण्डारो को टशोलकर बटे परिभम জীব भनो- योग पूर्वक कवि की कृतियों का संग्रह, प्रतिलिखन, सम्पादस क्रता पड़ा । उनका यह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now