जैन दर्शन | Jain Dharashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
804
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कैलाशचंद्र जैन - Kailaschandra Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाक्षिक-पत्र
नीति ओर प्रगति में रंख मात्र भी हीयमान अंतर न
आधवे, सदा विजेता रहो, अटूट भाग्यवान शनो, बज्
समान रद वनो.खधा समान मधुर बनो, ओर निष्क-
लंक पूणं चन्द्र समान प्रिय बनो, द्वितोया के चन्द्र
समान निरन्तर कर्म॑क्े्र म॑ बदते जावो, पवं सूय
समान प्रताप प्रकाशसे खंसार में प्रख्याति प्राप्त करो।
[११ ]
यद्द हृदय तो तुम्हारे स्वागत में बहुत कुछ
कहना चाहन। है, किन्तु हाथो में वद शक्ति नीं
किं उसकी दच्छा पणं कर सकष । दस कारण इतन।
लिख कर विशाम लेते हैं कि जेनदर्शन ! ठुम सब
के नयनानंद बनो, तुम विश्व के लिये तथा अपने
स्वागत /
[ ले० --श्री० कल्याणकुमार जी “शशि” ]
नद = कुछ ও হিল
आओ दर्शन! आओ ! आओ वदनः आजा!
छाया चारों ओर निबिड़ तम
ट हीरको की आभा कम
रहं चमक इमिटरान चम चम
दिव्य प्रमा प्रगराओ
आओ 'दशंन' आ ॥ १ ॥
कविय प्रदर्शित झिलमिल सा बल
ये भंगे पग तारक दल
मचा रहे हैं जग में हलचल
इनका ग॒ गिराओं
आओ “दक्ान' आओ ॥ २॥
निर्वो यदह इस ओर चराचर
खड़ा हुआ जीवन डथोढ़ी पर
डोल रहा दे डगमग थरथर
इसको मार्ग दिखाओ
आओ 'दशेन' आओ ॥ ३॥
इन्हीं भावनाओं पर प्यारा
स्वागत है हे सखे ! तुम्हारा
लिये मंगलमय होवो । तुम्हारा दिषु
राजेन्द्र
৩ ४१
जेन जानति आदश बनाना
আম वीरता बल सरसाना
कर्मठना का पार বালা
जीवित क्रान्ति मचाओ
आओ “दर्शन! आओ ॥ ৩ ॥
बनना निर्विकार निर्मोहो
दया सत्य नय न्थाय बराह
बन घन स्वाथं पक्ष-विद्रोहो
अरुण रश्मि बिखराओं
आओ दन आओ ॥ ५॥
लाना पथ में कभी न अन्तर
लाना विमल श्रकाश निरन्तर
करना छती तान युगान्तर
सोरूय सुधा सरसाओ
झाओ 'दंन”ः आओ॥ ६॥
साद्र 'प्रेमपुनीत' हमारा
लो इसको अपनाओ--आओ 'दशेन” आओ ॥ ও ॥
< ~ ~ রহ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...