जैन दर्शन | Jain Dharashan

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Jain Dharashan by कैलाशचंद्र जैन - Kailaschandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाक्षिक-पत्र नीति ओर प्रगति में रंख मात्र भी हीयमान अंतर न आधवे, सदा विजेता रहो, अटूट भाग्यवान शनो, बज् समान रद वनो.खधा समान मधुर बनो, ओर निष्क- लंक पूणं चन्द्र समान प्रिय बनो, द्वितोया के चन्द्र समान निरन्तर कर्म॑क्े्र म॑ बदते जावो, पवं सूय समान प्रताप प्रकाशसे खंसार में प्रख्याति प्राप्त करो। [११ ] यद्द हृदय तो तुम्हारे स्वागत में बहुत कुछ कहना चाहन। है, किन्तु हाथो में वद शक्ति नीं किं उसकी दच्छा पणं कर सकष । दस कारण इतन। लिख कर विशाम लेते हैं कि जेनदर्शन ! ठुम सब के नयनानंद बनो, तुम विश्व के लिये तथा अपने स्वागत / [ ले० --श्री० कल्याणकुमार जी “शशि” ] नद = कुछ ও হিল आओ दर्शन! आओ ! आओ वदनः आजा! छाया चारों ओर निबिड़ तम ट हीरको की आभा कम रहं चमक इमिटरान चम चम दिव्य प्रमा प्रगराओ आओ 'दशंन' आ ॥ १ ॥ कविय प्रदर्शित झिलमिल सा बल ये भंगे पग तारक दल मचा रहे हैं जग में हलचल इनका ग॒ गिराओं आओ “दक्ान' आओ ॥ २॥ निर्वो यदह इस ओर चराचर खड़ा हुआ जीवन डथोढ़ी पर डोल रहा दे डगमग थरथर इसको मार्ग दिखाओ आओ 'दशेन' आओ ॥ ३॥ इन्हीं भावनाओं पर प्यारा स्वागत है हे सखे ! तुम्हारा लिये मंगलमय होवो । तुम्हारा दिषु राजेन्द्र ৩ ४१ जेन जानति आदश बनाना আম वीरता बल सरसाना कर्मठना का पार বালা जीवित क्रान्ति मचाओ आओ “दर्शन! आओ ॥ ৩ ॥ बनना निर्विकार निर्मोहो दया सत्य नय न्थाय बराह बन घन स्वाथं पक्ष-विद्रोहो अरुण रश्मि बिखराओं आओ दन आओ ॥ ५॥ लाना पथ में कभी न अन्तर लाना विमल श्रकाश निरन्तर करना छती तान युगान्तर सोरूय सुधा सरसाओ झाओ 'दंन”ः आओ॥ ६॥ साद्र 'प्रेमपुनीत' हमारा लो इसको अपनाओ--आओ 'दशेन” आओ ॥ ও ॥ < ~ ~ রহ




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