श्री लाड सागर | Shri Lad Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= __ औलाइशाग _
सुख रोस भरथो उद्दिम मन और धरनो दभि कौ भौ मू বনি বি
दरा री \ यलि वलि दृन्दावन ছিব प्रम कौतुक इदि दै कंपाट भवन दु
कुर्वेरि जाइ री ॥
राग भरो तालभप-पद् १६. রি
हसति लसति भान धरनि ललिता सों वृमति दे कँ कनक तनी वैगि
ই वताउ री । कितु व्यो अजिर ददी तदपि दीं सोच रदी यतिलडि रि
गई भाजि खोजि लाउ री ॥ मैया देखी ज्॒ में न कहाँ गई मृगज नन
दामिनि सी कोंधि छिपी कर उपाउ री। बेटी अकुलात हीय देखे विन कल न
-जीय मो सों गई रूठि ताहि तू मनाउ री ॥ माँगे सो सो जे दंउ हिये सों
लगाह लेंउ नेंननि की थातती अवहीं मिलाउ री। लँ य नटि वाहि फैरि करि
, “दे तू टेरि टेरि आउ प्रान प्यारी मो उर सिराउ री॥ आई घर घर निहारि
युधि बल सव रदी हरि सखि शोभ देन लली मुख दिखाउ री । मेया उर
सवल नेह राधा: विनु रुचि न ग्रह भोजन वार करि द सुधि राव्ल হাত री॥
` चंपकलता चित लगाई खोजि दधि ही भरे पाह वादी भवन जेठी लखि
कल्यो अ(उ री! जम देती धु वच्ा दिपि कियो गेन रेते लई उर `
लगाई भीजि भाउ री ॥ चू वति सुख ঘানলি सुख भलि गयौ सवद दुख
निधनी धन पाइ ज्यों ज्ञ॒ बढ़त चाउ री । वलिं वलि दृन्दाधन दितरूप कर
जिमावति दे दू्वैरि कदति मेय्( मंगल गबाउ री ७.
` राग रामकली-प्रद १७
राधा लाड मूरति वनी । जदपि काम विगारिं भाजति तदपि प्यारी
घनी ॥ मेरी सीख न् सुनत राखति अर ज॒ मन अपनी! यति हदली
छ्वेरि तोसों पनि रदति सच जनी ॥ दँ रहति तकर वदन दिशि हित करत
- रावल धनी। और को समुमाइ हे सुनि कुर्वेरि चंपक तनी ॥ घोष में कन्या -
जिर्ी तिनमें मुकट तू मनी। रचति नाना खेल वचन पियूष से अवनी ॥ गोप
.- गोपिनु प्रान है तें अधिक प्यारी गनी । जिहिं घर तू नहिं जाहि ते गनें
জি
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