श्री लाड सागर | Shri Lad Sagar

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Shri Lad Sagar by श्री राधामाधव अनुचर - shree Radhamanav Anuchar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= __ औलाइशाग _ सुख रोस भरथो उद्दिम मन और धरनो दभि कौ भौ मू বনি বি दरा री \ यलि वलि दृन्दावन ছিব प्रम कौतुक इदि दै कंपाट भवन दु कुर्वेरि जाइ री ॥ राग भरो तालभप-पद्‌ १६. রি हसति लसति भान धरनि ललिता सों वृमति दे कँ कनक तनी वैगि ই वताउ री । कितु व्यो अजिर ददी तदपि दीं सोच रदी यतिलडि रि गई भाजि खोजि लाउ री ॥ मैया देखी ज्॒ में न कहाँ गई मृगज नन दामिनि सी कोंधि छिपी कर उपाउ री। बेटी अकुलात हीय देखे विन कल न -जीय मो सों गई रूठि ताहि तू मनाउ री ॥ माँगे सो सो जे दंउ हिये सों लगाह लेंउ नेंननि की थातती अवहीं मिलाउ री। लँ य नटि वाहि फैरि करि , “दे तू टेरि टेरि आउ प्रान प्यारी मो उर सिराउ री॥ आई घर घर निहारि युधि बल सव रदी हरि सखि शोभ देन लली मुख दिखाउ री । मेया उर सवल नेह राधा: विनु रुचि न ग्रह भोजन वार करि द सुधि राव्ल হাত री॥ ` चंपकलता चित लगाई खोजि दधि ही भरे पाह वादी भवन जेठी लखि कल्यो अ(उ री! जम देती धु वच्ा दिपि कियो गेन रेते लई उर ` लगाई भीजि भाउ री ॥ चू वति सुख ঘানলি सुख भलि गयौ सवद दुख निधनी धन पाइ ज्यों ज्ञ॒ बढ़त चाउ री । वलिं वलि दृन्दाधन दितरूप कर जिमावति दे दू्वैरि कदति मेय्‌( मंगल गबाउ री ७. ` राग रामकली-प्रद १७ राधा लाड मूरति वनी । जदपि काम विगारिं भाजति तदपि प्यारी घनी ॥ मेरी सीख न्‌ सुनत राखति अर ज॒ मन अपनी! यति हदली छ्वेरि तोसों पनि रदति सच जनी ॥ दँ रहति तकर वदन दिशि हित करत - रावल धनी। और को समुमाइ हे सुनि कुर्वेरि चंपक तनी ॥ घोष में कन्या - जिर्ी तिनमें मुकट तू मनी। रचति नाना खेल वचन पियूष से अवनी ॥ गोप .- गोपिनु प्रान है तें अधिक प्यारी गनी । जिहिं घर तू नहिं जाहि ते गनें জি




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