मोक्षमाला | Moksh Mala

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Moksh Mala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनायी ঘুনি মান ৭. ९ ययोः अने. षीरयो हं अनेक प्रकारना अश्वनो भोगी एड; अ- नेकमरकारना मदोन्मत्त हायीजोनो धणी छर; अनेक परकारनी सैन्या मने आधीन छे; नगर, ग्राम, अंतःपुर अने षरुष्पादनी भरे कंर न्यूनता नयी; मतुष्य संबंधी सघा मकारना भोग हूं पाम्यों छठं। अनुचरों पारी आज्ञाने रुढी सीते आरापे छ; एम राजाने छाजती से प्रकारनी संपाचि मारे घेरछे। अनेक मनवांछित पस्तुओं मारी समीपे रहेछे. आदो हं महान्‌ छतां अनाय केप होठ ! रखे है भगवन्‌ , तमे मपा बोलता हो ! मुनिए कह्यु, रा- जा। म्ारु कहेदुं तुं न्‍्यायपू्वेक समज्यों नयी- हवे हुं जेम अनाथ थयो; अने जेम में संसार याम्यो तेम तने कुं छठ ते एकाग्र अने साषधान वित्तथी-सांभठ; सांभखीने पी तारी शंकानो सत्यासत्य निर्णेय करने. कौशांबी नामे अति जींण॑ अने विविध प्रकारनी भव्यताथी भरेली एक छुंदर नगरी छे; लां रीद्धिपी परिपृणे पन्संचय नामनो मारो पिता रेतो हतो. हे महाराजा ! योवन वयना प्रथम भागमां पारी आंखों अति वेदनाथी घेराइ; आखे शरीरे अप यठ्या मंद्यो. शस्रयी पण आतिशय तीक्ष्ण ते रोग बैरी- नी पेठे मारापर कोप्रायमान थयो. मारुं मस्तक ते आंखनी असष्वेदनायी दुःखदा छाग्युं, वद्चना प्रहार जेवी, बीजा ने-पण रौद्रभय उपजावनारी एवी ते दारुण देदनायी हं अ- त्यंव शोकमां एतो. संख्यावंध वैयक्शाख्निपूण बैयराजा मारी ते वेद्नानो नाद करवाने पाटे आस्या अने तेमणे अनेक ओषध उपचार करा पण ते या गया. ए महा निपूण गणाना वैपरानो २




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