सारित्सागरभाषा | Saritsagarbhasha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Saritsagarbhasha by श्री सोमदेव महाकवि - Shri Somadev Mahakavi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री सोमदेव महाकवि - Shri Somadev Mahakavi

Add Infomation AboutShri Somadev Mahakavi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रंग,, ~ . विषय से पुत्र होना और विर्मादित्य के पास विक्रमशाह्लि सेनापति के मेजे हुये शरनंगदेव दूतको “औना और पृष्टसे प्रतक | ,तरंग, , एना फे धरन मेँ दूरतो वितमसि करी कुल कद प्िदलद्वीप केः राजा वरतेन के धवदक्नेन टूतको बता अपने माय चरित्रों मे टु्ठमें प्रवेश व एक छ 'स्याका समागम वन करा-- श्रनग्देव दूते कन्या के के दृत्तारत.को राजा .. विक्रमादित्य से वन, फरना और राजाविकरमादित्य “को अपने विक्रमशक्रि खेनापाति के मिलने को स- सैन्य गमन बर्णेन-- हर राजा विकमादित्य व परिकमयग्डिकां समागम पश्चत्‌ सिंहवद्रीप फी रान पुत्री तथा चन्यदो कन्याधनं ' ६६१ ६६४ ६९४ ७०३ द ॐ ` ४ * ~ विषय 7 „^ + ॥ से, साजाको विवाद पश्चात्‌ एक शज पुत्रीकों चित्रदेख राजाकों आशक््दोना ओर संचर सिद्धि को उसका “হোল कथन और राजा को वहां जी मलपसिंद की कन्या मलयवती सि विवाह कर निज पुर गमन वर्यन-- 1 . रानी कालिगसेना को फापेटिक से सुनी कथा अन्य सानियों से वयन करना-- रानी कद्िंगसेना को पने विवाद पन्त प्री कथा * कार्पेटिफ से सुनी अन्य रानियों से कहना भर नर वाहनदत्त को विक्रमादित्य फी सम्पूर्ण कथा मुनियों से कह गोपालक से झाजशाते ऋपभपवत पर आग- ঘন নহান-_ 7 सरित्सागरभाषाकी मूमिका \ यह वात प्रायः सर्वसाधारणको विदितदै कि इस संसारमें वहुघा जितने परोपकारी विपय द उनका आरम्भ यदि विचारपून्ैकःमूचम दषते देसराजाय तो वहुधा इस भारतवर्ष के : चार्योकाही कियाहुआ पायाजाताह यहांतक कि सदुपदेशसे भरीहुई सर्वसाधारणमे ५ कथाएं-मी.उन्र आचार्य्यो के वनायेहुए ग्रन्थों से वहिभ्त नहीं हें इसी वात का यह कथा : नाम अन्य उदाहरण कस्षत्तहे यह ग्रन्थ पहले पिशाच भाषा में इहत्कथा नामसे था जिसके निभा) वले महाकवि गुणाव्य नाम यह महाकषिं सुस्ताब्द के प्रथम शतक में प्रतिष्ठानदेशके महाराज सात वाहनकी समा में थे इन्होंने जिसप्रकारसे पिशाच्र भाषा में एक लाख <णो . চা कथा बनाई सो इसके कथा पीठलम्बक में प्रकट्हे इसी वृहत्कथाकों सैक्षिमकरके कवि ने संस्कृत के २५००० हजार श्लोकों में यह इृहत्कथा नाम ग्रन्थ कदम ५४ राज अनन्तराजकी परम परिडतारानी सस्यैयती के कहने से निर्माण किया इहत्कथाका :




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now